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________________ एस धम्मो सनंतनो गौ त म बुद्ध का सारा उपदेश, सारी देशना एक छोटे से शब्द में संगृहीत की - जा सकती है। वह छोटा सा शब्द है-स्मृति। पाली में उसी का नाम है-सति। और बाद में मध्ययुगीन संतों ने उसी को पुकारा-सुरति। स्मृति का अर्थ मेमोरी नहीं। स्मृति का अर्थ है-बोध, होश। जागकर कुछ करना। जागे-जागे होना। स्मृतिपूर्वक करना। राह पर चलते हैं आप, तो ऐसे भी चल "सकते हैं कि चलने का जरा भी होश न हो—ऐसे ही चलते हैं। चलना यांत्रिक है। शरीर को चलना आ गया है। दफ्तर जाते हैं, घर आते हैं, रास्ता शरीर को याद हो गया है। कब बाएं मुड़ना, बाएं मुड़ जाते हैं; कब दाएं मुड़ना, दाएं मुड़ जाते हैं; अपना घर आ गया तो दरवाजा खटका देते हैं। लेकिन इस सब के लिए कोई स्मृति रखने की जरूरत नहीं होती। यंत्रवत यह सब होता है। इसके लिए होशपूर्वक करने की कोई जरूरत नहीं मालूम होती। ऐसा हमारा पूरा जीवन निन्यानबे प्रतिशत बेहोशी से भरा हुआ है। यही बेहोशी हमारा बंधन है। इसी बेहोशी के कारण हमारा बहुत बड़ा चैतन्य का हिस्सा अंधेरे में डूबा है। जैसे पत्थर डूबा हो पानी में और जरा सा टुकड़ा ऊपर उभरा हुआ दिखायी पड़ता हो, बड़ी चट्टान नीचे छिपी हो। ऐसा हमारा बड़ा मन तो अंधेरे में छिपा है, छोटा सा टुकड़ा ऊपर उभरा है। जिसे हम अपना मन कहते हैं, वह बहुत छोटा सा हिस्सा है। और जिसे हम पहचानते भी नहीं- हमारा ही मन-वह बहुत बड़ा हिस्सा है। फ्रायड उसे ही अचेतन मन कहता है। __ बुद्ध कहते हैं, उस अचेतन मन को जब तक चेतन न कर लिया जाए, जब तक धीरे-धीरे उस अचेतन मन का एक-एक अंग प्रकाश से न भर जाए, तब तक तुम मुक्त न हो सकोगे। तुम्हारे भीतर जब चेतना का दीया पूरा जलेगा, तुम्हारे कोने-कांतरों को सभी को आलोक से मंडित करता हुआ, तुम्हारे भीतर एक खंड भी न रह जाएगा अंधेरे में दबा, तुम परम प्रकाशित हो उठोगे, इस दशा को ही बुद्ध ने समाधि कहा है। समाधि जड़ता का नाम नहीं। समाधि बेहोश हो जाने का नाम नहीं। जो समाधि बेहोशी में ले जाती हो, उसे बुद्ध ने जड़-समाधि कहा है। उसे मूढ़ता कहा है। तुम समाधि में गिर पड़ो मूर्छित होकर तो बुद्ध उसे समाधि नहीं कहते। इसलिए बुद्ध की बात आधुनिक मनोविज्ञान को बहुत रुचती है। आधुनिक मनोविज्ञान भी उस जड़-समाधि को हिस्टीरिया कहेगा। वह बेहोशी है। तुममें जो थोड़ा सा होश था, वह भी खो दिया। शांति मिलेगी उससे भी, क्योंकि उतनी देर के लिए बेहोश हो गए तो चिंता न रही, उतनी देर के लिए सब विलुप्त हो गया। घंटेभर बाद जब तुम होश में आओगे तो तुम्हें लगेगा कि बड़ी शांति थी, लेकिन वैसी ही शांति जैसी गहरी नींद में हो जाती है। पर गहरी नींद समाधि तो नहीं। समाधि और गहरी नींद में थोड़ी सी समानता है। इतनी समानता है कि गहरी 68
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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