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एस धम्मो सनंतनो
डूबो, जीओ, उत्तर मत खोजो। उत्तर नहीं है।
तुम पूछते हो कि 'क्या जीवन प्रश्न है या पहेली?'
प्रश्न तो बिलकुल नहीं, अन्यथा दर्शनशास्त्र से उत्तर मिल गए होते। पहेली भी ऐसी है कि जिसका कोई उत्तर नहीं है। और इस जीवन को अगर जानने की आकांक्षा सच में है, तो जीओ और बांटो। जितना रस ले सको, लो; और जितना रस दे सको, दो। क्योंकि जितना दोगे, उतना ही मिलेगा। कंजूस की तरह इस जीवन की तरफ दृष्टि मत रखना। तिजोड़ी में बंद करने की कोशिश मत करना, बांटो। ____ मैंने सुना है, एक बार एक सतत प्रवाही नदी और बंद घेरे में आबद्ध तालाब में कुछ बातें हुईं। तालाब ने नदी से कहा, तू व्यर्थ ही अपनी जल-संपत्ति को समुद्र में फेंके जा रही है। इस तरह एक दिन निश्चित ही तू चुक जाएगी, समाप्त हो जाएगी। अपने को सम्हाल, अपने जल को रोक, संगृहीत कर।
तालाब की यह सलाह एक व्यावहारिक आदमी की सलाह थी। लेकिन नदी थी वेदांती। उसने कहा, तुम भूल गए हो, तुम भूल कर रहे हो, तुम्हें जीवन का सूत्र ही विस्मरण हो गया है; देने में बड़ा आनंद है, ऐसा आनंद जो कि रोकने में नहीं है। जब कभी मैंने रोका, तो मैं दुखी हुई हूं। और जब मैंने दिया, तब सुख खूब बहा है। जितनी मैं बही हूं, उतना सुख बहा है। और यह मत सोचना कि मैं सागर को दे रही हूं, मैं अपने सुख के कारण दे रही हूं-स्वांतः सुखाय। देना ही मैंने जीवन जाना है। तुम मृत हो, और अगर युगों तक भी बने रहे तो उससे क्या? एक क्षण भी कोई पूरी तरह जी ले तो जान लिया, अनुभव कर लिया; सदियों तक कोई बना रहे, सड़ता रहे, तो उससे क्या? न जीआ, न अनुभव किया। __दोनों की बात तो एक-दूसरे से मेल खायी नहीं, मनमुटाव हो गया, फिर उन्होंने बोल-चाल बंद कर दिया। इस बात को ज्यादा दिन नहीं बीते थे कि नदी तो पूर्ववत ही बहती रही, तालाब सूखकर तलैया रह गया। फिर आयी धूप, तपता हुआ सूरज, फिर एक कीचड़ की गंदी तलैया मात्र बची। फिर तो वह भी सूखने लगी। जब गर्मी का ताप पूरे शिखर पर आया, तो तालाब समाप्त हो चुका था। नदी अब भी बह रही थी। मरते तालाब से नदी ने कहा, देखो, मैं देती हूं तो मेरे स्रोत मुझे देते हैं। तुम देते नहीं तो तुम्हारे स्रोत तुम्हें नहीं देते। जो देता है, उसे मिलता है। देना जीवन का नियम है। और अगर प्रत्येक न देने पर आबद्ध हो जाए, तो जीवन समाप्त है।
जीवन को पहेली, प्रश्न, ऐसा सोचकर हल करने में मत लग जाना। जीवन जीने में, और जीना देने में है। इसलिए सारे धर्मों ने दान को धर्म का मूल सूत्र कहा है। दान का मतलब सिर्फ इतना ही होता है-बांटो।
जो तुम्हारे पास हो, उसे बांटो, उसे उलीचो। इधर तुम देने लगोगे, उधर तुम पाओगे अज्ञात स्रोतों से तुम्हारे भीतर जल बहने लगा। कुआं देखते न, जितना पानी खींच लेते हो, उतना कुएं में पानी भर जाता है। नया पानी आ जाता है, नए जल के
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