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________________ जीने में जीवन है झरने फूट पड़ते हैं। कुएं से पानी मत खींचो, डरकर बैठे रहो, ढांक दो कुएं को, बंद. कर दो कि कहीं पानी चुक न जाए, कभी समय पर काम पड़ेगा, तो कुआं सड़ जाएगा। और धीरे-धीरे झरने जब बहेंगे नहीं, तो सूख जाएंगे; उन पर मिट्टी जम जाएगी, पत्थर बैठ जाएंगे, झरने अवरुद्ध हो जाएंगे। जीवन को जानना है तो जीओ। जीवन में ही जीवन है। जीने में जीवन है। जीवन को संज्ञा मत समझो, जीवन को क्रिया समझो। और दो, बांटो। इसको प्रश्न मानकर, आंख बंद करके हल करने की कोशिश मत करना। नाचो, गाओ, गुनगुनाओ। सम्मिलित होओ। यह जो विराट उत्सव चल रहा है परमात्मा का, इसमें भागीदार होओ। जितनी तुम्हारी भागीदारी होगी, उतना ही तुम पाओगे, उतना ही तुम समझोगे, उतना ही तुम अनुभव करोगे। फिर भी मैं तुमसे दोहरा दूं कि यह ज्ञान कभी न बनेगा। ऐसा न होगा कि तुम एक दिन कह सको—मैंने जान लिया। ऐसा कभी नहीं होता। यह इतना बड़ा है कि हम जानते रहते, जानते रहते, जानते रहते, फिर भी चुकता नहीं है। यह अशेष बना रहता है। यह शेष ही रहता है, कभी समाप्त नहीं होता है। आज इतना ही। 65
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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