________________
एस धम्मो सनंतनो
प्रश्न तो निश्चित नहीं है। क्योंकि जीवन का कोई उत्तर नहीं है। जिसका उत्तर न
-हो, वह प्रश्न तो हो नहीं सकता। पहेली जरूर है, लेकिन पहेली भी ऐसी जिसका कोई हल नहीं है। हल हो जाने वाली पहेली नहीं है जीवन। इसलिए ज्ञानियों ने उसे रहस्य कहा है।
रहस्य का अर्थ होता है—ऐसी पहेली जिसका कोई हल होना संभव नहीं है। जिसे तुम जी तो सकते हो, लेकिन जान कभी नहीं सकते। जिसको तुम कभी ज्ञान नहीं बना सकते। अनुभव तो बन जाएगा, लेकिन ज्ञान कभी न बनेगा। जिसको तुम कभी मुट्ठी में नहीं बांध सकोगे।
ऐसा ही समझो कि जैसे तुम सागर में तो उतर सकते हो, लेकिन सागर को मुट्ठी में नहीं ले सकते। सागर बड़ा है, विराट है, तुम्हारी मुट्ठी छोटी है। जीवन बहुत बड़ा है, जीवन को समझने का हमारा जो मस्तिष्क है, बहुत छोटा है। यह मस्तिष्क डुबकी लगा सकता है जीवन के सागर में, रस-विभोर हो सकता है, लेकिन जीवन को कभी हल न कर पाएगा।
यही तो दर्शन और धर्म में फर्क है। जैसा मैंने तुमसे कहा, नीति और धर्म में फर्क है। नीति आदमी को अच्छा बनाती है, धर्म आदमी को जगाता है। ऐसे ही धर्म
और दर्शन में फर्क है। दर्शन सोचता है-जीवन का उत्तर क्या है ? जीवन के रहस्य को हल कैसे करें? जीवन की पहेली कैसे बूझें? धर्म कहता है-यह तो बूझा नहीं जा सकता। पहले यह तो सोचो कि बूझने वाला कितना छोटा है, और जिसे बूझना है कितना बड़ा है! चम्मच से सागर को खाली करने चले हो! कि चम्मच चम्मच में रंग लेकर सागर को रंगने चले हो! थोड़ी होश की बातें करो। धर्म कहता है-तुम डुबकी तो लगा सकते हो, जीवन को जी तो सकते हो उसकी परम धन्यता में, लेकिन जान नहीं सकते। यह पहेली है, जिसका कोई उत्तर नहीं। ___ मैं पढ़ता था, रवींद्रनाथ के जीवन में एक संस्मरण है। रवींद्रनाथ किसी मित्र के घर मेहमान थे। मित्र की छोटी बच्ची ने उनसे सुबह-सुबह आकर कहा, यदि आपको एक कोठरी में बंद करके उस पर ताला जड़ दिया जाए तो आप क्या करेंगे? जैसे छोटे बच्चे पूछते हैं। कोठरी में बंद कर दिया और ताला लगा दिया, फिर आप क्या करोगे? रवींद्रनाथ ने कहा, मैं पड़ोसियों की सहायता के लिए आवाज लगाऊंगा। पर लड़की बोली, छोड़िए, वह बात तो कहिए ही मत, कोठरी ऐसी जगह है जहां कोई पड़ोसी है ही नहीं। मान लीजिए पड़ोस में कोई है ही नहीं, फिर क्या करिएगा? रवींद्रनाथ सोच में पड़ गए, बोले, तब मैं किवाड़ों को तोड़ने की कोशिश करूंगा। लड़की हंसी। उसने कहा, यह नहीं चलेगा, किवाड़ लोहे के बने हैं। रवींद्रनाथ ने सोचा और फिर कहा कि तब तो यह जीवन की पहेली हो गयी, कि मैं जो कुछ भी करूंगा उसको असफल करने की व्यवस्था पहले से ही कर ली गयी है।
जीवन ऐसी पहेली है।