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जीने में जीवन है
बुद्ध का एक शिष्य था—विमलकीर्ति। अनूठे शिष्यों में एक था। उसके पास भी लोग जाते डरते थे। क्योंकि वह हर बात में से कुछ ऐसी बात निकाल देता था, कुछ ऐसा तर्क खड़ा कर देता था-बड़ा तार्किक था, दार्शनिक था कि एक बार विमलकीर्ति बीमार हआ, तो बद्ध ने अपने दो-चार शिष्यों को कहा कि जाकर पूछकर आओ विमलकीर्ति की तबियत कैसी है? कोई जाए न! यह पूछने भी कि तबियत कैसी है, क्योंकि वह उसी में से कुछ निकाल देगा। और उससे लोग डरते थे कि वह विवाद में वहीं उलझा देगा।
आखिर मंजुश्री बुद्ध का दूसरा एक प्रमुख शिष्य जाने को राजी हुआ। मंजुश्री गया। विमलकीर्ति से उसने पूछा, आप बीमार हैं, कैसी तबियत है? भगवान ने स्मरण किया, पुछवाया है। विमलकीर्ति ने कहा, मैं बीमार हूँ! बात गलत। जो बीमार है, वह मैं कैसे हो सकता हूं। मैं तो द्रष्टा हूं, देख रहा हूं कि शरीर बीमार है। और तुम पूछते हो कि मैं बीमार हूं। सभी बीमार हैं। जो भी शरीर में है, बीमार है। कम-ज्यादा होंगे, सारा अस्तित्व बीमार है, विमलकीर्ति ने कहा। जीवन बीमार है, कामना का रोग लगा है, और बड़ा रोग क्या चाहिए। इधर कामना खा रही है, उधर मौत पास आ रही है। इधर कामना एक-एक टुकड़ा काटे जा रही है, मरने के पहले मारे डाल रही है, उधर मौत आ रही है; कुछ बचा-खुचा रहेगा तो मौत समाप्त कर देगी। __ तो विमलकीर्ति ने कहा, पहली तो बात मैं बीमार नहीं हूं, मैं तो देख रहा हूं। दूसरी बात, मैं ही बीमार नहीं हूं, सारा अस्तित्व बीमार है-अस्तित्व मात्र बीमार है। होना यहां बीमारी है। ___विमलकीर्ति ठीक कह रहा है, कामना काटे डालती है। तुम कामना की तलवार से अपने को कितना काट रहे हो, कितना दुख पा रहे हो। कामना से सुख तो कभी मिलता नहीं, क्योंकि कामना कभी पूरी तो होती नहीं जो सुख मिल जाए, सदा अधूरी रहती है और सदा काटती रहती है, घाव को हरा रखती है, भरने भी नहीं देती, घाव को बार-बार उघाड़ लेती है। एक कामना किसी तरह छूटती है, तो दस पैदा हो जाती हैं। यह कामना का ज्वर बीमारी है।
जीवन बीमार है कामना से, कामना की पूर्णाहुति मृत्यु में होती है। लेकिन तब तुम चूक गए। मरने के पहले अगर तुम कामना को मार डालो, तो तुम अमृत को उपलब्ध हो जाओगे। कामना मृत्यु में ले जाती है, निष्काम चित्त अमृत को उपलब्ध हो जाता है।
आखिरी प्रश्नः
जीवन प्रश्न है या पहेली?
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