________________
एस धम्मो सनंतनो
हंसने लगे। सरदार ने कहा, उपदेश दें। वह तो मौन थे, उपदेश दे नहीं सकते थे, तो उन्होंने रेत पर अंगुली से एक छोटा सा वचन लिख दिया। जो वचन लिखा, वह था— जो चाहते हो वह मत करो, तब तुम जो चाहोगे कर सकोगे। जो चाहते हो वह मत करो, तब तुम जो चाहोगे कर सकोगे। बड़ी अनूठी बात लिख दी । जो-जो कामना कर रहे हो, वह मत करो, तब तुम जो-जो कामना करते हो वह मिल जाएगा। यह बड़ी अजीब बात हो गयी !
मगर ऐसा ही है। जब तक तुम मांगोगे, नहीं मिलेगा। जिस दिन तुम छोड़ दोगे, उसी दिन मिल जाएगा। तुम भागोगे और सुख छलता रहेगा। तुम रुक जाओ और सुख तुम्हारे चरणों में लोटने लगेगा।
मैंने सुना है, एक युवक धन के पीछे पागल था । सब उपाय कर देखे, कुछ रास्ता न मिला। एक फकीर के पास पहुंच गया। फकीर से उसने कहा कि मैं बड़े उपाय करता हूं, धन पाना है, लेकिन धन मिलता नहीं, क्या करूं? और जब फकीर के पास वह गया था तब गांव का सबसे धनी आदमी फकीर के पैर दाब रहा था। तो उसने कहा, यह मामला क्या है? मैं धन के पीछे दीवाना हूं, धन मुझे मिलता नहीं। तुम सब छोड़-छाड़कर यहां बैठे हो, यह धनी आदमी तुम्हारे पैर क्यों दाब रहा है ? तो उस फकीर ने कहा, ऐसा ही होता है। तुम धन की फिकर न करो तो धनं तुम्हारे पैर बेगा। तो उसने कहा, यह किसी ने मुझे अब तक बताया नहीं; चलो यही करेंगे।
दो-तीन साल बाद आया । और हालत खराब हो गयी थी। बड़ा नाराज हो गया। कहने लगा कि किस तरह की बात बता दी ? मैंने धन की फिकर छोड़ दी तो जो पास था वह भी चला गया। आने की तो बात ही रही, मैं बार-बार देखता हूं कि अब आएगा कोई धनी आदमी पैर दाबेगा, अब लक्ष्मी आएगी और पैर दाबेगी, कोई पता नहीं चलता। उस फकीर ने कहा, यह बार-बार देखने के कारण ही लक्ष्मी नहीं आ रही है। और जब छोड़ ही दिया तो बार- बार क्या देखना ! तो तूने छोड़ा ही नहीं । लौट - लौटकर देखता है, उसका मतलब ही यह हुआ कि तूने छोड़ा नहीं ।
इस जगत का यह मौलिक नियम है, तुम जो चाहोगे, न मिलेगा। तुम्हारी चाह कारण ही बाधा पड़ जाती है। तुमने चाह छोड़ी कि सब बरसने लगता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम इसी बरसने के लिए चाह छोड़ना । नहीं तो चाह छोड़ी नहीं, फिर तुम लौट - लौटकर देखते रहोगे !
कामना में तो द्वंद्व है। इसलिए कामना में अशांति है । कामना में पीड़ा है, संताप है। कामना तुम्हें खंडों में बांट देती है, टुकड़ों में तोड़ देती है। कामना तुम्हें विक्षिप्त करती है, कामना पागलपन का मूल है। कामना गयी तो पागलपन गया; कामना गयी तो खंड गए, तुम अखंड हुए; तुम अखंड हुए तो ब्रह्म हुए; तुम अखंड हुए तो निर्वाण बरसा; तुम अखंड हुए, तुम एक हुए, फिर कोई दुख नहीं है। दो होने में है, दुई में दुख है; अद्वैत सच्चिदानंद है।
दुख
60