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जीने में जीवन है
सकती। जैसे दो होने चाहिए लड़ने के लिए, दो होने चाहिए प्रेम करने के लिए, दो चाहिए द्वंद्व के लिए, ऐसे ही दो चाहिए कामना के लिए। और दो की तो बात छोड़ो, हमने तो अनेक कर लिए। इसलिए हमारे कामना के घोड़े सभी दिशाओं में दौड़े जा रहे हैं।
'और क्या कोई अखंड और अविभाजित कामना संभव नहीं है ?'
नहीं, अखंड और अविभाजित कामना संभव नहीं है। क्योंकि जहां तुम अखंड और अविभाजित हुए, वहां कामना न रह जाएगी। जहां कामना आयी, वहां तुम खंडित हो गए और विभाजित हो गए।
सुना है मैंने, दक्षिण भारत के एक अपूर्व साधु हुए - सदाशिव स्वामी । कुछ दिन पहले मैंने तुमसे उनकी कहानी कही थी, कि अपने गुरु के आश्रम में एक पंडित को आया देख उससे विवाद में उलझ गए थे, उसके सारे तर्क तोड़ डाले थे, उसे बुरी तरह खंडित कर दिया था, पंडित को तहस-नहस कर डाला था। पंडित बहुत ख्यातिनाम था। तो सदाशिव सोचते थे कि गुरु पीठ थपकाएगा और कहेगा कि ठीक किया, इसको रास्ते पर लगाया। लेकिन जब पंडित चला गया तो गुरु ने सिर्फ इतना ही कहा, सदाशिव ! अपनी वाणी पर कब संयम करोगे ? क्यों व्यर्थ, क्यों व्यर्थ बोलना ? इससे क्या मिला? यह सब बकवास थी ! कब चुप होओगे ? और सदाशिव ने गुरु की तरफ देखा, चरण छुए और कहा कि आप कहते हैं, कब ! अभी हुआ जाता हूं। और वह चुप हो गए। फिर जीवनभर मौन रहे ।
यह उन्हीं की घटना है ! उन्होंने जीवनभर मौन रहने की साधना स्वीकार कर ली थी, मौन थे और नग्न । नग्न रहते और चुप, बड़ी झंझटें आती थीं। एक तो मौन, बोलते नहीं, और नग्न घूमते ! समाधि उनकी निरंतर लगी रहती थी । मस्त ही रहते थे अपनी मस्ती में |
एक दिन भूल से एक मुसलमान सरदार के शिविर में चले गए । मस्ती में जा रहे थे नाचते, शिविर बीच में पड़ गया होगा तो पड़ गया, कोई शिविर के लिए गए नहीं थे। स्त्रियों ने डरकर चीख लगा दी। कोई नंगा मस्ती में नाचता हुआ चला आ रहा है, वे समझे कोई पागल है। नग्न साधु को घुसा देखकर सरदार भी क्रोध में आ गया। और उसने तलवार उठा ली और हमला कर दिया । सदाशिव का एक हाथ कटकर नीचे गिर गया। लेकिन सदाशिव के आनंद में कोई बाधा न पड़ी। हाथ कटकर गिर गया, लहू बहने लगा, लेकिन नाच जारी रहा। जैसे नाचते आए थे वैसे ही नाचते चलने, वापस लौटने लगे।
सरदार हैरान हुआ, दुखी भी हुआ - यह मस्ती, ऐसी मस्ती कभी देखी न थी । और हाथ कट जाए और पता न चले, ऐसी मस्ती ! किसी और लोक में था यह आदमी। आंखों में देखा तो जैसे इस लोक में था ही नहीं, कहीं और। इसकी चेतना जैसे देह में थी ही नहीं। दुखी हुआ, पैरों पर गिर पड़ा, क्षमा मांगने लगा। सदाशिव
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