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एस धम्मो सनंतनो
विभाजन न हो तो कामना ही मर जाए। अगर दो न हों तो कामना कैसे करोगे? दो तो अनिवार्य हैं। जो मैं हूं, वह; और जो मैं हो सकता हूं, वह; यह दो की तो धारणा अनिवार्य है। तो दोनों के बीच कामना का सेतु बनेगा, कामना का तार खिंचेगा, कामना की रस्सी फैलेगी। अगर एक ही है, तो फिर कैसी कामना!
इसीलिए तो ज्ञानियों ने कहा, एक को ही देखो, तो कामना मर जाएगी। एक ही है, ब्रह्म ही है, या सत्य ही है। तो फिर कामना नहीं बचेगी। जो है, है; इससे अन्यथा न हुआ है, न हो सकता है, फिर कैसे कामना करोगे? फिर कामना का कोई उपाय न रह जाएगा। ___ मैंने सना है, एक सूफी फकीर हसन रोज प्रार्थना करता था, और रोज छाती पीटता था और परमात्मा से कहता था, हे प्रभु, द्वार खोलो, कब से पुकार रहा हूं। वह एक बार एक दूसरे सूफी फकीर स्त्री राबिया के घर ठहरा हुआ था—राबिया बड़ी अनूठी औरत हुई। जैसे मीरा, जैसे सहजो, जैसे थेरेसा, ऐसी राबिया। जैसे बुद्ध, कृष्ण और महावीर पुरुषों में, ऐसी राबिया। राबिया सुनती थी, दो-तीन दिन से हसन उसके यहां ठहरा था, रोज प्रार्थना करता, रोज छाती पीटता और कहता, हे प्रभु, द्वार खोलो! कब से पुकार रहा हूं, कब मेरी अर्ज सुनोगे? ___ तीसरे दिन राबिया से न सुना गया, वह पास ही बैठी थी, उसने जाकर उसे हिलाया, हसन को, उसने कहा, सुनो जी, दरवाजा खुला पड़ा है! यह क्या पुकार मचा रखी है रोज-रोज कि दरवाजा खोलो! दरवाजा खोलो! दरवाजा खुला है, दरवाजा कभी बंद नहीं था! हसन तो घबड़ा गया। राबिया के प्रति उसके मन में आदर तो बहुत था ही, कहती है तो ठीक ही कहती होगी। तो हसन ने पूछा, फिर, फिर मुझे खुला क्यूं नहीं दिखायी पड़ता? तो राबिया ने कहा, इसलिए दिखायी नहीं पड़ता कि तुम बहुत ज्यादा आतुर हो, बड़े कामी हो-खुल जाए दरवाजा! हे प्रभु खोलो! दरवाजा खोलो, मुझे स्वर्ग में बुला लो, मुझे आनंद के जगत में बुला लो! यह तुम्हारी कामना पर्दा बन रही है। परमात्मा का दरवाजा खुला हुआ है, तुम्हारी कामना पर्दा बन रही है। तुम्हारी आंख बंद है, परमात्मा का दरवाजा बंद नहीं है।
इसीलिए तो बुद्ध ने यहां तक कहा है कि परमात्मा की भी बात छोड़ दो, क्योंकि उससे भी दो पैदा हो जाते हैं-मैं और परमात्मा। इसलिए बुद्ध ने कहा, मोक्ष की भी बात छोड़ दो, उससे भी दो पैदा हो जाते हैं—मैं और मोक्ष। बुद्ध ने तो कहा, जो है, है, उसको दो नाम मत दो। दो दिए कि अड़चन शुरू हुई, कि तनाव शुरू हुआ। फिर तुम कैसे रुकोगे। जो दूसरा है उसको पाने की तलाश शुरू हो जाएगी, प्यास शुरू हो जाएगी।
अस्तित्व एक है। कामना दो में बांट देती है। तुम पूछते हो, 'उसका विभाजित रहना क्या अनिवार्य है?' बिलकुल अनिवार्य है। क्योंकि विभाजन न होगा तो कामना बच ही नहीं
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