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________________ जीने में जीवन है बनी रहती है। तुम्हारे पास दस हजार रुपये हैं, मन कहता है, अगर एक लाख हो जाएं तो बस, फिर नहीं चाहिए कुछ। तुम्हारा मन कहता है, बार-बार कहता है कि बस एक लाख हो जाएं! एक लाख होते ही तुम पाओगे कि वही मन कहने लगा कि अब दस लाख जब तक न होंगे तब तक शांति नहीं। क्यों? दस हजार थे तो एक लाख-दस गुने में शांति थी। अब एक लाख हैं तो दस लाख–दस गुने में फिर शांति है। फासला उतना का उतना है। गरीब और अमीर दोनों के बीच कामना बराबर होती है। भिखारी और सम्राट के बीच कामना बराबर एक सी होती है, कोई फर्क नहीं होता। क्या तुम सोचते हो भिखारी खड़ा हो और सम्राट खड़ा हो, तो यह जो आकाश छूता हुआ दिखायी पड़ता है, दोनों के लिए अलग-अलग दूरी पर दिखायी पड़ेगा? सम्राट को भी बीस मील आगे दिखायी पड़ता है, भिखारी को भी बीस मील आगे दिखायी पड़ता है। यह भ्रांति समान है। जो जहां है, सदा उससे आगे कहीं तृप्ति का स्रोत मालूम होता है। कहीं आगे है मरूद्यान: यहां मरुस्थल, वहां है मरूद्यान। .. जिसने जाना कि यहीं है मरूद्यान और इसी क्षण में आंख बंद करके डुबकी मार ली, जिसने कामना छोड़ी, कल्पना छोड़ी, स्वर्ग उतर आता है। तुम कामना छोड़ो, इधर स्वर्ग आया। और कामना छोड़ने का मतलब यह नहीं है कि तुम स्वर्ग की कामना के लिए कामना छोड़ो। नहीं तो कामना छोड़ी ही नहीं। फिर भूल हो जाएगी। ऐसी भूल रोज होती है। धार्मिक आदमी यही भूल करता है। वह कहता है, चलो ठीक, आप कहते हैं कामना छोड़ने से सुख मिलेगा, तो हम कामना छोड़ देते हैं, सुख मिलेगा न? पक्का है? मगर यह तो कामना का ही नया रूप हुआ। कामना छोड़ने से सुख मिलता है, परिणाम की तरह नहीं, छाया की तरह। तुमने कामना छोड़ी, तो उसी छोड़ने में सुख तो था ही, कामना के कारण दिखायी नहीं पड़ता था; कामना गयी कि सुख प्रगट हो जाता है। जैसे पर्दा पड़ा था। इस पर्दे के हटने से सुख पैदा होने का कोई संबंध नहीं है, यह उसका परिणाम नहीं है, सुख तो पड़ा ही था, तुमने कामना का पर्दा डाल रखा था। लेकिन अगर तुमने सोचा कि चलो, कामना छोड़ने से सुख मिलेगा हम कामना छोड़ देंगे, तो तुम कामना को तो सजा रहे हो भीतर अभी भी, अभी भी तुम सुख पाना चाहते हो, इसीलिए कामना छोड़ने को भी राजी हो। ___ यह धार्मिक जीवन की सबसे बड़ी उलझन है। लोग कहते हैं, संसार छोड़ने से स्वर्ग मिल जाएगा तो संसार छोड़ देते हैं मगर स्वर्ग पाने की आशा में! और पाने की आशा का नाम संसार। कुछ मिले, इस वासना का नाम संसार। 'प्रत्येक कामना का अपना प्रतिपक्ष क्यों है?' होगा ही, क्योंकि कामना विभाजन करती है। यह और वह, यहां और वहां में विभाजन करती है। संसार और स्वर्ग। विभाजन से ही कामना जीती है, अगर 57
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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