SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीने में जीवन है भविष्य स्पष्ट हो जाता है। सारी बात ऐसे साफ हो जाती है जैसे दिन में सूरज निकलता है और सब रास्ते दिखायी पड़ने लगते हैं। और रात के अंधेरे में सब खो जाते हैं। ध्यान के लिए कोई बहाने खोजकर बचने की कोशिश मत करना। ध्यान इस जगत में एकमात्र करने योग्य बात है। शेष न किया, चलेगा। ध्यान न किया तो चूके, तो जीवन से चूके। फिर भी तुम्हारी मर्जी! दूसरा प्रश्न: प्रत्येक कामना अपना प्रतिपक्ष लिए क्यों आती है? उसका विभाजित रहना क्या अनिवार्य है? और क्या कोई अखंड और अविभाजित कामना संभव नहीं है? यह कामना क्या है? पहले तो कामना क्या है? कामना का अर्थ है-जो हूं, जैसा हूं, वैसा ठीक नहीं हूं; जहां हूं, वहां संतुष्ट नहीं हूं; कहीं और होऊं, कुछ और होऊं, किसी और ढंग से होऊं। कामना का अर्थ है—यह जगह मेरी जगह नहीं, कोई और जगह मेरी जगह है; यह जो मेरा जीवन है, यह मेरा जीवन नहीं, कोई अन्य जीवन मेरा जीवन है। कामना का अर्थ है-जो है, उससे अतृप्ति; और जो नहीं है, उसकी आकांक्षा। ___ कामना का मौलिक स्वर असंतोष है। और जिसको कामना से मुक्त होना हो, उसे संतोष के पाठ सीखने पड़ते हैं। जो जैसा है, उससे राजी है; जहां है, उससे राजी है। जिसका राजीपन पूरा है; जो कहता है कि ठीक, जितना मिलता, उतना भी क्या कम है; जो मिलता, उतना भी क्या कम है; मिलता है, यही क्या कम है; ऐसे जिसके जीवन में भीतर एक संतोष का संगीत बजता है, उसकी कामना विसर्जित हो जाती है। कामना असंतोष का शोरगुल है। तो जो मकान है तुम्हारे पास, उससे मन राजी नहीं। बड़ा मकान चाहिए। जिसके पास बड़ा है, उसका बड़े से राजी नहीं, उसे और बड़ा चाहिए। और इतना बड़ा मकान कभी हुआ ही नहीं जिससे कोई राजी हुआ हो। जो सुंदर है, वह अपने सौंदर्य से राजी नहीं। जो स्वस्थ है, वह अपने स्वास्थ्य से राजी नहीं। किसी बात से हम राजी नहीं हैं। नाराज रहना हमारा स्वभाव हो गया है। हर चीज हमें काटती है। और हमें लगता है, इससे बेहतर हो सकती है। इससे बेहतर हो सकती है, बस, इसी से कामना पैदा होती है। कल्पना से कामना पैदा होती है। पशु-पक्षी प्रसन्न हैं, क्योंकि कल्पना नहीं है। वृक्ष आनंदित हैं—ये सरू के वृक्ष 55
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy