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________________ जीने में जीवन है हो जाते हैं कि दंड दे दिया। ___ तुम जब भी किसी को दुख दे रहे हो, तुम बचकानी बात कर रहे हो। इसका उत्तर आएगा। ___मैंने सुना है, एक छोटी सी बड़ी प्यारी कहानी। सम्राट अकबर की एक बेगम थी जोधाबाई। अकबर, जोधाबाई और बीरबल एक सुबह नदी-तट पर घूमने को गए हैं। जोधाबाई आगे थी, बीरबल बीच में था, अकबर सब के पीछे था। अकबर को शरारत सूझी, उसने बीरबल की कमर में चिकोटी काट ली। बीरबल को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन चुप रहा। सोचने लगा, क्या करूं? कुछ कदम आगे चलकर बीरबल ने जोधाबाई की कमर में चिकोटी काट ली। जोधाबाई ने क्रोध में एक तमाचा बीरबल के मुंह पर जड़ दिया, बीरबल ने उसी प्रकार एक जोरदार तमाचा पीछे आ रहे अकबर के मुंह पर जड़ दिया। अकबर आग-बबूला होकर बोला, बीरबल, यह क्या हिमाकत है? गुस्ताखी माफ जिल्ले-इलाही, बीरबल ने कहा, आपने जो चिट्ठी भेजी थी उसका जवाब आया है। - जवाब आते हैं। यहां कोई भेजी गयी चिट्ठी बिना जवाब के नहीं रहती। यह सारा अस्तित्व प्रत्युत्तर देता है, प्रतिध्वनित करता है। तुम जो करते हो, वह लौटता है। और कई गुना होकर लौटता है-चिकोटी काटी थी और जोरदार तमाचे की तरह लौटता है। चाहे तुम सोच भी न पाओ कि मेरी चिकोटी से इसका कोई संबंध है, लेकिन संबंध है। यही तो कर्म का पूरा सिद्धांत है। दुख दो और दुख पाओगे। फिर दुख पाओगे तो और दुख देने को उत्सुक हो जाओगे। और दुख दोगे और दुख पाओगे। फिर तो इसका जाल कहीं टूटेगा नहीं। संसार में दुख घना होता जाता है इसीलिए। बरे आदमी के कारण दुख नहीं है, बेहोश आदमी के कारण दुख है। नीति समझाती है कि बुरा आदमी भला हो जाए, धर्म समझाता है, बेहोश आदमी होश में आ जाए-नीति और धर्म का यही भेद है। नैतिक आदमी जरूरी नहीं है धार्मिक हो, लेकिन धार्मिक आदमी जरूरी रूप से नैतिक होता है। नैतिक आदमी हो सकता है नईश्वर को माने, न ध्यान को माने। आखिर रूस में भी नैतिक आदमी हैं, चीन में भी नैतिक आदमी हैं, नास्तिक भी नैतिक हो सकता है। नैतिक होने के लिए धार्मिक होने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन धार्मिक आदमी अनैतिक नहीं हो सकता। धर्म की पकड़ और गहरी है। धर्म के साथ नीति अपने आप आती है, नीति के साथ धर्म अपने आप नहीं आता। फिर नीति में तो एक तरह का दमन होता है। तुम अच्छे होने की कोशिश करते हो, किसी तरह रोक-थामकर अपने को अच्छा भी बना लेते हो, लेकिन भीतर-भीतर तो बुराई की आग जलती रहती है। भीतर तो वही रोग उफनते रहते हैं, भीतर तो वही मवाद इकट्ठी होती रहती है। चोरी तुम भी करना चाहते हो लेकिन कर नहीं पाते। बेईमानी तुम भी करना चाहते हो लेकिन घबड़ाते हो। दुनिया में सौ ईमानदारों में 51
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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