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________________ एस धम्मो सनंतनो का होता है कि मैं पकड़ा गया, अब दुबारा पकड़ा न जाऊं, बस। तो वहां और दादागुरु हैं, वे सिखाने बैठे हैं। तुमने और विद्यालय में भेज दिया उनको-जेलखाना विद्यालय है। तुम्हारे जेलखाने से कोई सुधरकर नहीं निकला। अब तो मनोवैज्ञानिक कहने लगे हैं कि जेलखाने की पूरी व्यवस्था बदल दो। इसको जेलखाना कहो ही मत, इसको दंडालय समझो ही मत, इसको सुधारालय या ज्यादा से ज्यादा अस्पताल कहो। यहां चिकित्सा करो लोगों की, दंड मत दो। मगर तुम्हारे संतों को अभी भी अकल नहीं आयी है, अभी भी नर्क में दंड दिया जा रहा है। बात तो वही की वही है, गणित वही का वही है। नर्क से किसी पापी के ठीक होकर लौटने की तुमने खबर सुनी? किसी पुराण में लिखा है ? मैंने तो बहुत खोजा, मुझे नहीं मिला कि कोई पापी नर्क गया हो और वहां से सुधरकर लौटा हो। कोई कहानी ही नहीं है। जो गया नर्क सो नर्क में ही पड़ा है, और बिगड़ता जा रहा है। दंड से कोई सुधरता नहीं, दंड से तो सिर्फ तुम भी दुष्ट होने का मजा ले लेते हो। फिर यह जो मौलिक गणित है इसके भीतर, वह अब तक यह रहा कि जो आदमी बुरे हैं, उनके कारण दुनिया में दुख है। मैं तुमसे कहना चाहता हूं, बुरों के कारण दुनिया में दुख नहीं है, बेहोश लोगों के कारण दुख है। और बेहोश होने के कारण ही वे बुरे भी हैं। बुराई में जड़ नहीं है, बेहोशी में जड़ है। और ध्यान यानी होश। . ___ अब तक दुनिया को हमने ऐसी कोशिश की है कि बुरा आदमी भला हो जाए-दंड से हो, प्रलोभन से हो, मार-पीट से हो, फुसलाने से हो, रिश्वत से हो। तो नर्क का भय दिखलाते हैं, स्वर्ग की रिश्वत दिखलाते हैं। आदर मिलेगा, सम्मान मिलेगा, समाज में प्रतिष्ठा मिलेगी; राष्ट्रपति पद्मभूषण, पद्मश्री की उपाधियां देंगे। अच्छा करो! बुरा किया तो दंड मिलेगा, जेलखाने में पड़ोगे, प्रतिष्ठा खो जाएगी, नाम न रहेगा, नर्क में पड़ोगे। तो दंड और लोभ, भय और प्रलोभन, इनके आधार पर हम आदमी को बुराई से उठाने की कोशिश करते रहे हैं। यह कोशिश सफल नहीं हुई। दुनिया बुरी से बुरी होती चली गयी है। इस कोशिश की बुनियादी बात में कहीं भूल है, जड़ में भूल है। मेरा विश्लेषण कुछ और है। मेरा मानना ऐसा नहीं है कि दुनिया में बरे आदमियों के कारण दुख है। मेरा मानना ऐसा है कि दुनिया में बेहोश आदमियों के कारण दुख है। बेहोश आदमी ही दुख दे सकता है। क्यों? क्योंकि जिसे होश आ जाए, उसे तो यह भी होश आ जाता है कि दो दुख और मिलेगा दुख। कौन अपने को दुख देना चाहता है ? सिर्फ बेहोश आदमी दुख दे सकता है, क्योंकि उसे यह पता नहीं कि दुख का उत्तर फिर और बड़ा दुख होकर आता है। जैसे छोटे बच्चे, रास्ते से गुजरते हों, कुर्सी का धक्का लग गया तो गुस्से में आ जाते हैं, कुर्सी को एक थापड़ जमा देते हैं। थापड़ से कुर्सी को चोट लगती कि नहीं, उसका तो कुछ पता नहीं, उनके हाथ को चोट लगती है। मगर वे बड़े प्रसन्न 50
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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