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________________ जीने में जीवन है दुख दे रहे हैं। दुनिया में पापी हैं, पापियों के कारण दुख हो रहा है। तुम कुछ नए नहीं हो जो तुम कहते हो, अगर भगवान हमें मिल जाएं तो इन दुष्टों को जो दुनिया में दुख फैला रहे हैं, इनको दंड दिलवा देंगे। तुम नए नहीं हो, तुम्हारे ऋषि-मुनि सदा से यही करते रहे हैं। इसलिए तो नर्क बनाया, भगवान से प्रार्थना करवा-करवाकर नर्क बनवाया कि पापियों को नर्क में डाल दो। लेकिन तुमने देखा, नर्क की ही तरह तुमने जमीन पर कारागृह बना रखे हैं। जिनको तुम गलत समझते हो, उनको कारागृह में डाल देते हो। कारागृह से किसी को तुमने कभी सुधरकर लौटते देखा? कारागृह से कभी कोई सुधरकर आया है? हां, तुम्हारी दंड देने की आकांक्षा पूरी हो जाती है, तुम्हारी दुष्टता पूरी हो जाती है। उस आदमी ने एक गलती की थी, तुमने और एक गलती कर ली। __उस आदमी ने समझो कि किसी की हत्या की थी और समाज ने उससे बदला ले लिया। समाज की तरफ से प्रतिनिधि बैठा है अदालत में मजिस्ट्रेट, उसने उसे फांसी दिलवा दी। लेकिन फांसी देने से क्या फर्क हुआ? जहां एक आदमी मरा था, वहां दो आदमी मरे। एक भूल दूसरी भूल से तो कटती नहीं, घटती नहीं, दुगुनी हो जाती है। जहां थोड़ी सी कालिख थी वहां और दुगुनी कालिख हो गयी। एक आदमी ने कुछ भूल-चूक की थी, तुमने सजा दे दी, पांच साल जेल में डाल दिया। तुमने कभी देखा कि जेल से लौटकर कभी भी कोई सुधरा है! जेल से लौटकर और बिगड़कर आ जाता है। क्योंकि जेल में और पुराने दादाओं से मिलन हो जाता है। दादागुरु वहां बैठे हैं, पुराने निष्णात, वह सब बता देते हैं कि तू पकड़ा कैसे गया, तेरे से यह भूल हो गयी, अब दुबारा ऐसी भूल मत करना। जिस वजह से दंड दिया है उसको थोड़े ही भूल समझते हैं वहां कारागृह में बैठे लोग, पकड़े जाने को भूल समझते हैं। ___मेरे एक शिक्षक थे, बहुत प्यारे आदमी थे, उनकी बात मैं कभी नहीं भूलता। मुसलमान थे। वह सदा सुपरिटेंडेंट होते थे स्कूल में परीक्षाओं के, सब से बुजुर्ग शिक्षक थे। पहली दफे ही जब वह सुपरिटेंडेंट थे और मैंने परीक्षा दी, तो उनकी बात मुझे जंची। वह आए अंदर और उन्होंने कहा कि तुम चोरी करो, नकल करो, कुछ भी करो, इससे मुझे फिकर नहीं है, पकड़े भर मत जाना। पकड़े गए तो सजा पाओगे। पकड़े गए तो मुझसे बुरा कोई भी नहीं। अब तुम खुद ही सोच लो। मुझे चोरी से कोई एतराज ही नहीं है। चोरी से क्या एतराज, जब तक नहीं पकड़े गए तब तक तुम मजे से करो। अगर तुम्हें पकड़े जाने का डर हो तो जो-जो विद्यार्थी कुछ नोट ले आए हों, कुछ कर लिए हों, कृपा करके दे दें। बहुत से विद्यार्थियों ने दे दिए निकालकर! यह बात तो सीधी-साफ थी, यह गणित बिलकुल साफ-सुथरा था। इस दुनिया में दंड चोरी का थोड़े ही मिलता है, पकड़े जाने का मिलता है। तो जब तुम किसी चोर को जेल में डाल देते हो, उसको जो कष्ट होता है वह इस बात 49
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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