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एस धम्मो सनंतनो
प्रभु ने अर्धोन्मीलित लोचन खोल पूर्ण को देखा अधरों पर प्रस्फुटित हो उठी सहज स्नेहमय रेखा रखा शीश पर हाथ पूर्ण के, कहा वत्स तुम जाओ निर्भय होकर विकल मनों में शांतिप्रभा प्रकटाओ
इतनी शांति भीतर हो कि मौत भी पीड़ा न दे, इतना ध्यान भीतर हो कि अपमान अपमानित न करे, पत्थर बरसाए जाएं तो क्रीड़ा समझ में आए, कोई प्राण भी ले ले तो भी धन्यवाद में बाधा न पड़े, धन्यवाद में भेद न पड़े, तो ही कोई व्यक्तिं इस जगत में सुख देने में समर्थ हो पाता है। इसलिए बुद्ध ने कहा, अब तुम जा सकते हो। तुम जाओ बांटो, अब तुम्हारे पास है । जिसके पास है, वही बांट सकता है।
ध्यान का क्या अर्थ होता है ? ध्यान का अर्थ होता है, जो संपदा तुम लेकर आए हो इस जगत में, जो तुम्हारे अंतरतम में छिपी है, उसे उघाड़कर देख लेना, पर्दे को हटाना। अपनी निजता को अनुभव कर लेना । वह जो भीतर निनाद बज रहा है सदा से सुख का, उसकी प्रतीति कर लेना। फिर तुम बाहर सुख न खोजोगे । फिर बाहर
सब सुख, दुख जैसे मालूम होंगे। भीतर का सुख इतना पूर्ण है, ऐसा परात्पर, ऐसा शाश्वत, उसकी एक झलक मिल गयी तो सारे जगत के सब सुख, दुख जैसे हो जाते हैं, उसकी एक झलक मिल गयी तो बाहर का जीवन मृत्यु जैसा हो जाता है, उसकी तुलना में फिर सब फीका हो जाता है । फिर इसमें दौड़-धाप नहीं रह जाती, संघर्ष नहीं रह जाता, युद्ध नहीं रह जाता, कलह नहीं रह जाती।
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ऐसे ही ध्यान को उपलब्ध व्यक्ति इस जगत में सुख की थोड़ी सी गंगा को उतार ला सकते हैं। ऐसे ही भगीरथ गंगा को पुकार सकते हैं सुख की । तुमसे यह न हो सकेगा। तुम ध्यान करने को ही राजी नहीं। ध्यान का तुम्हें अर्थ भी पता नहीं, क्योंकि अर्थ पता भी कैसे होगा जब तक करोगे नहीं! तुम उस द्वार को खोलने से इनकार कर रहे हो जिस द्वार को खोलने से प्रभु मिलेगा । और तुम कहते हो, जब तक दुनिया दुख है, मैं यह द्वार पर दस्तक न दूंगा, क्योंकि यह तो बड़ा स्वार्थ हो जाएगा, लोग दुखी हैं। लोग भी इसीलिए दुखी हैं कि वे भी यही कह रहे हैं कि तब तक दस्तक न देंगे इस द्वार पर जब तक और लोग दुखी हैं ।
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यह तो बड़ा दुष्ट चक्र है। कम से कम तुम तो दस्तक दो ! तुम तो भीतर झांककर देखो ! और तुम्हें सुख मिल जाए तो फिर दौड़ पड़ना बाहर, जैसे पूर्ण रहा था लोगों में शांति की प्रभा जगाने, तुम भी चले जाना। फिर तुम से जो बने, करना। फिर तुम जो भी करोगे, शुभ होगा ।
ध्यान का अर्थ है - होशपूर्वक जीना । बिना ध्यान के जो आदमी जीता है, बेहोशी से जीता है।
आखिरी बात। आमतौर से तुमने यही सुना है, यही सोचा है, यही तुमसे कहा भी गया है सदियों से कि दुनिया में दुख है, क्योंकि दुनिया में बुरे लोग हैं। बुरे लोग
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