________________
जीने में जीवन है
न समझेंगे, तो फिर तुझे क्या होगा? तू तो समझाने जाएगा, लोग समझते कहां हैं! लोग समझना चाहते नहीं, लोग तो जो समझाने आता है उस पर नाराज हो जाते हैं! लोग अगर तेरा अपमान करेंगे, तो तुझे क्या होगा?
वत्स, किंतु यदि लोग न समझें, करें तुम्हें अपमानित? कहा पूर्ण ने, प्रभु उनको मैं नहीं गिनूंगा अनुचित धन्यवाद ही दूंगा, फेंकी धूल न पत्थर मारे ।
केवल कुछ अपशब्द, विरोधी बातें सुनीं, उचारे बड़े भले लोग हैं, ऐसा धन्यवाद मानूंगा। कुछ थोड़े से अपशब्द कहे, पत्थर भी मार सकते थे, धूल भी उछाल सकते थे। थोड़े से अपशब्द कहे, अपशब्दों से क्या बनता-बिगड़ता है! न कोई चोट लगती, न कोई घाव होता। बड़े भले लोग हैं, ऐसा ही मानूंगा।
किंतु अगर वे हाथ उठाएं, फेंकें तुम पर ढेले? धन्यवाद दूंगा, मानूंगा छेड़छाड़ कि खेले!
असि न कोश से खींची उनने, किया नहीं वध मेरा बुद्ध ने कहा, यह भी हो सकता है कि वे ढेले भी मारें, तुम्हारी पिटाई भी करें, पत्थरों से तुम्हारा सिर तोड़ दें, फिर पूर्ण, फिर क्या होगा?
किंतु अगर वे हाथ उठाएं, फेंकें तुम पर ढेले? धन्यवाद दूंगा, मानूंगा छेड़छाड़ कि खेले!
असि न कोश से खींची उनने, किया नहीं वध मेरा पूर्ण ने कहा, खश होऊंगा, भले लोग हैं, तरकस से तीर न निकाला, प्राण ही न ले लिए मेरे, सिर्फ पत्थर मारा; खेल-खेल में समझंगा, क्रीड़ा की; मारा ही, मार नहीं डाला, इतना ही क्या कम है?
और वत्स, यदि वध कर डाला उन लोगों ने तेरा? प्रभु ऐसी यदि मृत्यु मिले तो भाग्य उसे मानूंगा धर्म-पंथं पर प्राण गए, निर्वाण उसे जानूंगा प्रभु ने अर्धोन्मीलित लोचन खोल पूर्ण को देखा अधरों पर प्रस्फुटित हो उठी सहज स्नेहमय रेखा रखा शीश पर हाथ पूर्ण के, कहा वत्स तुम जाओ
निर्भय होकर विकल मनों में शांतिप्रभा प्रकटाओ जब पूर्ण ने कहा कि सिर्फ मारते हैं, मार ही नहीं डालते; तो बुद्ध ने पूछा, और अगर वे मार ही डालें? फिर तुझे क्या होगा पूर्ण? तो उसने कहा, धर्म के पथ पर अगर मर जाऊं तो इससे शुभ और मृत्यु क्या होगी?
प्रभु ऐसी यदि मृत्यु मिले तो भाग्य उसे मानूंगा धर्म-पंथ पर प्राण गए, निर्वाण उसे जानूंगा
47