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जीने में जीवन है
शायद तुमको लगेगा अपनी शांति मांगने में तो स्वार्थ हो जाएगा! तो मैं तुमसे कहता हूं, भले आदमी, स्वार्थ हो जाने दो! अपनी शांति मांगो! कुछ हर्जा नहीं है इस स्वार्थ में। तुम अपनी मांग लो, दूसरों के सामने प्रगट होगा वे अपनी शांति मांग लेंगे—यह दुनिया शांत हो सकती है।
और ध्यान का क्या अर्थ होता है ? ध्यान का अर्थ होता है-परमात्मा तो तुम्हारे सामने प्रगट नहीं हो रहा, आप ही कृपा करके परमात्मा के सामने प्रगट हो जाओ। ध्यान का इतना अर्थ होता है। परमात्मा तो प्रगट नहीं हो रहा है, साफ है। शायद तुमसे डरता है, भय खाता है, बचता है। तुम जहां जाते हो वहां से निकल भागता है, तुमसे पीछा छुड़ा रहा है। लेकिन तुम इतने शांत होकर परमात्मा के सामने प्रगट हो सकते हो। परमात्मा के सामने स्वयं को प्रगट कर देना ध्यान है। और अनायास वरदान की वर्षा हो जाती है। तुम्हारा सारा जीवनकोण बदल जाता है, देखने का ढंग बदल जाता है। ___ मैंने सुना है, एक झेन साधक देर से आश्रम लौटा। गुरु ने उससे देरी का कारण पूछा। तो शिष्य ने क्षमा मांगी और कहा कि माफ करें, गुरुदेव, रास्ते में पोलो का खेल हो रहा था, वह मैं देखने में लग गया। गुरु ने पूछा कि क्या खिलाड़ी थक गए थे? शिष्य ने कहा, जी हां, खेल के अंत तक तो बहुत थक गए थे। गुरु ने पूछा, क्या घोड़े भी थक गए थे? शिष्य थोड़ा हैरान हुआ कि यह बात क्या पूछते हैं ! मगर फिर उसने कहा, हां, घोड़े भी थक गए थे। फिर गुरु ने पूछा, क्या लकड़ी के खंभे भी थक गए थे? तब तो शिष्य ने समझा, यह क्या पागलपन की बात है! शिष्य उत्तर न दे सका, उस रात वह सो भी न सका। क्योंकि यह तो मानना असंभव था कि गुरु पागल है। इस बात की ही संभावना थी कि मझसे ही कोई भूल-चूक हो रही है। प्रश्न पूछा है तो कुछ अर्थ होगा ही।
रात सोया नहीं, जागता रहा, सोचता रहा, सोचता रहा। सुबह सूरज की किरण फूटते ही उसके भीतर भी उत्तर फूटा; जैसे अचानक एक बात अंतस्तल से उठी और ‘साफ हो गयी। वह दौड़ा हुआ गुरु के पास पहुंचा और उसने गुरु से कहा, कृपा कर
अपना प्रश्न दोहराइए, कहीं ऐसा न हो कि मैंने ठीक से सुना न हो। तो गुरु ने पूछा कि क्या खंभे भी थक गए थे? उस शिष्य ने कहा, हां, खंभे भी थक गए थे। ___ गुरु बहुत प्रसन्न हुए, उन्होंने उसे गले लगा लिया और कहा कि देख, अगर खंभों को थकावट न आती होती, तो थकावट फिर किसी को भी नहीं आ सकती थी; तेरा ध्यान आज पूरा हुआ। तूने आदमियों को थकावट आयी, इसमें हां भर दी; घोड़ों को थकावट आयी, इसमें तू थोड़ा झिझका, उसी सरलता से न कहा जितना तूने आदमियों के लिए कहा था। और जब मैंने खंभों की बात पूछी तब तो तू बिलकुल अटक गया। उससे जाहिर हो गया कि तेरा ध्यान अभी पूरा नहीं हुआ है। जब ध्यान पूरा होता है तो करुणा समग्र हो जाती है। आदमी ही नहीं थकते हैं, घोड़े
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