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एस धम्मो सनंतनो
___ ध्यान शब्द पर मत अटको। ध्यान का अर्थ इतना ही है कि तुम अपने भीतर के रस में डूबने लगे। जब तुम रसपूर्ण होते हो, तो तुम्हारे कृत्यों में भी रस बहता है। फिर तुम जो करते हो उसमें भी सुगंध आ जाती है। ध्यान से भरा हुआ व्यक्ति कठोर तो नहीं हो सकता, करुणा सहज ही बहेगी। ध्यान से भरा हुआ व्यक्ति शोषण तो नहीं कर सकता, असंभव है। ध्यान से भरा हुआ व्यक्ति हिंसक तो नहीं हो सकता, अहिंसा और प्रेम ध्यान की छायाएं हैं। करुणा ऐसे ही आती है ध्यान के पीछे जैसे बैलगाड़ी चलती है और उसके पीछे चाकों के निशान बनते चलते हैं-अनिवार्य है।
दुनिया में इतने लोग दुखी हैं और इतने लोग एक-दूसरे को दुख दे रहे हैं, दुख निश्चित है; मगर दुख का कारण क्या है? दुख का कारण यही है कि लोग सुखी नहीं हैं। तुम जिस अवस्था में हो उसी की तरंगें तुमसे पैदा होती हैं। सब अपने सुख की दौड़ में ही दूसरों को दुखी कर रहे हैं। कोई अकारण तो दुखी नहीं कर रहा है। कोई किसी को दुखी करने के लिए थोड़े ही दुखी कर रहा है! सब चाहते हैं सुख मिले, और अपने-अपने सुख की दौड़ में लगे हैं। स्वभावतः, इस दौड़ में बड़ा संघर्ष है। और सभी अपने सुख को बाहर खोज रहे हैं, सभी को दिल्ली जाना है, सभी को दिल्ली के पदों पर बैठना है। तो संघर्ष है, छीना-झपटी है, उठा-पटक है, आपा-धापी है।
फिर ठीक से पहुंचें कि गलत से पहुंचें, इसकी भी चिंता करने की फुर्सत कहां! क्योंकि दिखायी ऐसा पड़ता है-जो ठीक का बहुत विचार करते हैं, वे पहुंच ही नहीं पाते हैं। यहां तो जो ठीक का विचार नहीं करता है, वह पहुंचता हुआ मालूम पड़ता है। तो धीरे-धीरे साधन मूल्यहीन हो जाते हैं, बस लक्ष्य एक है कि सुख मिल जाए। फिर चाहे सबका सुख छीनकर भी सुख मिल जाए तो भी मेरा सुख मुझे मिलना चाहिए। इसी चेष्टा में दूसरा भी लगा है। इसी चेष्टा में सारी पृथ्वी के करोड़ों लोग लगे हैं। और सब बाहर दौड़ रहे हैं। ध्यान का अर्थ है-सुख बाहर नहीं है। ध्यान का अर्थ है-सुख भीतर है।
जो बाहर गया, वह दुख से और गहरे दुख में पहुंचता रहेगा। और जितने दुख में पहुंचेगा उतना ही प्यासा हो जाएगा कि सुख किसी तरह मिल जाए। फिर तो येन-केन-प्रकारेण, फिर तो अच्छी तरह मिले तो ठीक, बुरी तरह मिले तो ठीक, किसी की हत्या से मिले तो ठीक, किसी के खून से मिले तो ठीक, लेकिन सुख मिल जाए। जैसे-जैसे तुम अपने से दूर जाओगे, वैसे-वैसे सुख की गहरी प्यास पैदा होगी। और उस अंधी प्यास में तुम कुछ भी कर गुजरोगे। फिर भी सुख मिलेगा नहीं। सिकंदर को नहीं मिलता, न बड़े धनपतियों को मिलता है। सुख मिला है उन्हें जो भीतर की तरफ गए। और भीतर की तरफ जाने का नाम है ध्यान। अंतर्यात्रा है ध्यान। ___जो अपने में डूबा, उसे सुख मिलता है। जो अपने में डूबा, उसकी स्पर्धा समाप्त हो गयी। उसकी कोई प्रतियोगिता नहीं है। क्योंकि मेरा सुख मेरा है, उसे कोई छीनना
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