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एस धम्मो सनंतनो
सावधान ! झंझट में मत पड़ना। तो तुम पत्नी का हाथ भी हाथ में लेते हो, लेकिन पूरे मन से नहीं ले पाते। वह मां पीछे खींच रही है। इस मां का जाना होना ही चाहिए, नहीं तो तुम कभी प्रौढ़ न हो पाओगे।
ट्रांजेक्शनल एनालिसिस के लोगों को अगर बुद्ध के ये सूत्र मिल जाएं, तो उनके लिए तो बड़ा सहारा मिल जाएगा–माता-पिता की हत्या! माता-पिता की हत्या से तुम्हारे बाहर के माता-पिता की हत्या का कोई संबंध नहीं है। तुम्हारे भीतर जो माता-पिता की प्रतिमा बैठ गयी है उसकी हत्या होनी चाहिए, तभी तुम मुक्त हो पाओगे। और यह बड़े मजे की और विरोधाभासी बात है कि जिस दिन तुम भीतर के माता-पिता से मुक्त हो जाओगे, उस दिन तुम बाहर के माता-पिता को पहली दफा ठीक आदर दे पाओगे, उसके पहले नहीं। समादर पैदा होगा। अभी तो तुम भीतर इतने ग्रसित हो उनसे कि तुम्हारे मन में क्रोध है, मां-बाप को क्षमा करना भी मुश्किल है।
गुरजिएफ ने अपने दरवाजे पर लिख रखा था कि अगर तुमने अपने मां-बाप को क्षमा कर दिया हो तो मेरे पास आओ। अजीब सी बात! सत्य की खोज में आए आदमी से पूछना कि तुमने मां-बाप को क्षमा कर दिया या नहीं? क्षमा! लोग कहते, हम तो आदर करते हैं। वह कहता कि जाओ वापस, पहले क्षमा करो, आदर अभी कहां है, सब थोथा है। माफ तो करो पहले! __ माफ तुम तभी कर सकोगे जब तुम्हारे भीतर से सारा मां-बाप का जाल मिट जाए, तुम मुक्त हो जाओ। जिनसे तुम बंधे हो, उन्हें माफ नहीं कर सकते। गुलामी को कोई माफ करता है! परतंत्रता को कोई माफ करता है! कारागृह को कोई माफ करता है! और जिसने तुम्हें गुलाम बनाया है, उसको तुम आदर कैसे दे सकते हो? ___इसलिए अगर बच्चे मां-बाप के प्रति अनादर से भर जाते हैं तो आश्चर्य नहीं है। मां-बाप के प्रति आदर तभी हो सकता है जब मां-बाप से पूरा छुटकारा हो जाए।
और यह बाहर की बात नहीं है कि बाहर के मां-बाप को छोड़कर भाग जाओ। बाहर के मां-बाप को छोड़ने से कुछ भी नहीं होता। हिमालय चले जाओ, वहां भी भीतर के मां-बाप तुम्हारा पीछा करेंगे, वे तुम्हारे मन के हिस्से हो गए हैं। उस मन को बदलना जरूरी है।
बुद्ध के ये सूत्र, इसलिए मैंने कहे, बड़े महत्वपूर्ण हैं।
मातरं पितरं हत्वा राजानो द्वे च खत्तिये। रटुं सानुचरं हत्वा अनीघो याति ब्राह्मणो।।
ब्राह्मण मुक्त हो जाता है माता-पिता को मारकर, क्षत्रिय दो राजाओं को मारकर, राजा के अनुचरों को मारकर, सारे राष्ट्र की हत्या करके, अंततः स्वयं अपनी
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