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________________ मृत्यु की महामारी में खड़ा जीवन अमरीका इस समय दुनिया में सबसे ज्यादा बचकाना देश है, तो हर चीज इंस्टेंट-इंस्टेंट काफी-हर चीज इसी वक्त चाहिए। काफी बनाने की भी झंझट कौन करे? तैयार करने की भी झंझट कौन करे? तैयार चाहिए। हर चीज तैयार चाहिए। भोजन तैयार चाहिए, बस ज्यादा से ज्यादा डिब्बा खोलना आना चाहिए और कुछ खास जरूरत नहीं है। __ हर चीज इसी वक्त हो, ये बचकानी बातें हैं। मगर ये मरती नहीं, ये भीतर रहती हैं, ये कभी भी लौट आती हैं। ये किसी दुर्दिन में, दुर्घटना में प्रगट हो जाती हैं। तुम्हारी प्रौढ़ता ऊपर-ऊपर है, भीतर तुम्हारा बच्चा छिपा है जो कभी नहीं बढ़ा, जिसमें कोई प्रौढ़ता आयी ही नहीं। सामान्य कामकाज में तुम सम्हाले रहते हो अपने को, लेकिन जरा भी असामान्य स्थिति आती है कि तुम्हारी प्रौढ़ता दो कौड़ी की साबित होती है। तुम्हारी प्रौढ़ता चमड़ी से ज्यादा गहरी नहीं है, जरा किसी ने खरोंच दिया कि तुम्हारा बच्चा प्रगट हो जाता है। तो यह बच्चा जाना चाहिए, इसकी मृत्यु होनी चाहिए, तो ही तुम प्रौढ़ हो पाओगे।। फिर तुम्हारी मां और पिता तुम्हारे भीतर सदा बैठे हैं। इनकी भी मृत्यु होनी चाहिए। इसका बाहर के माता-पिता से कोई संबंध नहीं है। ट्रांजेक्शनल एनालिसिस का कहना यह है कि वही व्यक्ति ठीक से प्रौढ़ हो पाता है जिसके भीतर माता-पिता की आवाज समाप्त हो जाती है। नहीं तो तुम कुछ भी करो, माता-पिता की आवाज पीछा करती है। समझो कि तुम बचपन में कुछ काम करते थे, मां-बाप ने रोक दिया था, अब भी तुम वह काम करना चाहते हो, भीतर से एक आवाज आती है, तुम्हारा पिता कहता है-नहीं। हालांकि अब तुम स्वतंत्र हो। तुम अंधेरी रात में बाहर जाना चाहते थे, पिता ने रोक दिया था। तुम छोटे बच्चे थे, यह ठीक भी था रोक देना, तुम्हारी परिस्थिति के अनुकूल था। अब भी तुम अंधेरे में जाते हो बाहर तो ऐसा लगता है पिता इनकार कर रहे हैं। साफ नहीं होता, भीतर से कोई रोकता है, भीतर से कोई दबाता है, भीतर से कोई कहता है-मत जाओ, यह मत करो, ऐसा मत करो। यह जो भीतर तुम्हारे पिता की आवाज है, यह तुम्हें कभी बढ़ने न देगी। तुम्हारी मां अभी भी तुम्हें पकड़े हुए है। वह तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ती। उससे छुटकारा चाहिए। समझो कि तुम किसी एक लड़की के प्रेम में पड़ गए थे, और तुम्हारी मां ने बाधा डाल दी थी-शायद जरूरी था डालना, तुम्हारी उम्र भी नहीं थी अभी, अभी तुम प्रेम का अर्थ भी नहीं समझ सकते थे, अभी तुम झंझट में पड़ जाते, अभी तुम उलझ जाते, तुम्हारी पढ़ाई-लिखाई रुक जाती, तुम्हारा विकास रुक जाता-मां ने रोक दिया था। मां ने सब तरह से तुम्हें लड़कियों से बचाया था। __ अब तुम्हारी शादी भी हो गयी है, तुम्हारी पत्नी घर में है, लेकिन जब तुम पत्नी का भी हाथ हाथ में लेते हो, तुम्हारी मां भीतर से रोक रही है। वह कह रही है, 33
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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