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एस धम्मो सनंतनो
दुख से मुक्त हो गया है, देखते हैं इस भाग्यशाली भिक्षु को! इसकी तृष्णा भी नहीं रही—यह कुछ पाने को उत्सुक भी नहीं है। और इसका कोई अहंकार भी नहीं रहा—इसकी कोई मैं की घोषणा भी नहीं रही। यह शून्यवत हो गया है। जैसे है ही नहीं। इसने अपने को पोंछ लिया। इसलिए बुद्ध कहते हैं, इतना ही नहीं, इसने अपना भी आत्मघात कर लिया है। ___ अब खयाल करना, अगर हमारे जीवन की सारी दौड़ अहंकार और तृष्णा से बनी है, तो जिस दिन अहंकार और तृष्णा समाप्त हो जाएगी, उसी दिन हमारा जीवन भी समाप्त हो गया-आत्मघात भी हो गया। इसलिए तो बुद्धपुरुष कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने तृष्णा और अहंकार छोड़ दिया, उसका दुबारा जन्म नहीं होगा, वह संसार में फिर नहीं आएगा, उसका फिर पुनः आगमन नहीं है। उसने जीवन का मूलस्रोत ही तोड़ दिया। वह महाजीवन में विराजता। आकाश उसका घर होगा, निर्वाण उसकी नियति होगी।
इतना ही नहीं, बुद्ध कहते हैं, माता-पिता को, दो क्षत्रिय राजाओं को...। यह भी बड़ी अनूठी बात है। बुद्ध कहते हैं, आस्तिकता और नास्तिकता, ये दो राजा हैं दुनिया में। कुछ लोग आस्तिक बनकर बैठ गए हैं, कुछ लोग नास्तिक बनकर बैठ गए हैं। कुछ के ऊपर आस्तिकता का राज्य है, कुछ पर नास्तिकता का राज्य है। दोनों से मुक्ति चाहिए। क्योंकि जो है, उसे न तो हां से कहा जा सकता, और न ना में कहा जा सकता। जो है वह इतना बड़ा है कि हां और ना में नहीं समाता।
इसलिए बुद्ध से जब कोई पूछता है, ईश्वर है? तब चुप रह जाते हैं। वह कुछ भी नहीं कहते। बुद्ध से कोई पूछता है, आप आस्तिक हैं? तो चुप रह जाते हैं। नास्तिक हैं? तो चुप रह जाते हैं। क्योंकि वह कहते हैं कि अस्तित्व इतना विराट है कि हां और ना की कोटियों में नहीं समाता। हां कहो तो भी गलती हो जाती है, ना कहो तो भी गलती हो जाती है। हां और ना, दोनों इसमें समाहित हैं। कोई कोटियां मन की काम नहीं आतीं। __इसलिए मन की सारी विभाजक कोटियों से मुक्त हो गया है। दो क्षत्रिय राजाओं को भी इसने मार डाला है। ___हम अक्सर विभाजन में पड़े रहते हैं। कभी तुम कहते हो, दुख, कभी तुम कहते हो, सुख, विभाजन हो गया। कभी तुम कहते हो, मैं पुरुष, कभी तुम कहते हो, मैं स्त्री, विभाजन हो गया। जहां-जहां दो का विभाजन है, वहां-वहां तुम मन के प्रभाव में रहोगे। द्वैत यानी मन। और जहां दोनों गिरा दिए, तुम चुप हो गए—मौन यानी मन के पार हो जाना; मौन मन के बाहर हो जाने की स्थिति है; मौन अद्वैत है।
इसने दो राजाओं को मार डाला है। उनके अनुचरों को भी मार डाला है-सब सिद्धांत, सब शास्त्र, सब फिलासफी इसने आग लगा दी है। अब न यह सोचता, न यह विचारता, अब तो यह शून्य निर्विचार में ठहरा है। इसने सारे राष्ट्र को भी मार
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