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एस धम्मो सनंतनो
हो, तुम किसी को अपने में उलझाने में लगे हो।
संसार में तो ठीक है कि तुम बन-संवरकर निकलते हो रास्ते पर, लेकिन भिक्षु बन-संवरकर निकले तो फिर बात गलत हो गयी। बात इसलिए गलत हो गयी कि भिक्षु होने का अर्थ ही यही था कि अब मुझे और आसक्ति के जाल नहीं फैलाने हैं। बहुत हो चुका। मैंने देख लिया कि आसक्ति से सिवाय दुख के कुछ भी नहीं मिलता है। तो अब मुझमें कोई आसक्त हो, इसकी मैं कोई योजना न करूंगा। मुझे लोग देखें, इसकी चेष्टा न करूंगा। मैं ऐसे निकल जाऊंगा जैसे निकला ही नहीं। कोई मुझे देखे न, कोई मुझमें उत्सुक न हो, मैं चुपचाप ऐसे निकल जाऊंगा जैसे था ही नहीं। ऐसे चुपचाप जीने जो लगता है, वही संन्यासी है। दूसरा मुझे पकड़े, दूसरा मुझे समझे मूल्यवान, दूसरा मुझमें उत्सुक हो, दूसरा मुझसे सम्मोहित हो, इसके पीछे वासना ही छिपी है, ताकि मैं दूसरे का भोग कर सकूँ। . . ___ लोग बड़ी उलटी वासनाओं से भरे हैं। स्त्रियां घर में बैठी रहती हैं भूत-प्रेत बनीं, घर से बाहर जाती हैं, खूब सज-संवर जाती हैं, फिर जवान हो जाती हैं। सौ प्रतिशत सौंदर्य में नब्बे प्रतिशत तो प्रसाधन से होता है, दस प्रतिशत शायद स्वाभाविक होता हो। और वह जो दस प्रतिशत स्वाभाविक होता है, उसको नब्बे प्रतिशत की जरूरत भी नहीं होती। नब्बे प्रतिशत की जरूरत तो. वह जो दस प्रतिशत भी नहीं होता, उसी को छिपाने के लिए होती है। कुरूप व्यक्ति ज्यादा सजता-संवरता है। कुरूप स्त्री ज्यादा आभूषणों में रस लेती है। परिपूरक करना होता है। जो सौंदर्य से नहीं पूरा हो रहा है, उसे किसी और चीज से पूरा कर देना है। चेहरा तो सुंदर नहीं है, तो बालों की शैली बदली जा सकती है। नाक तो बहुत सुंदर नहीं है, तो हीरे की नथ पहनी जा सकती है। नाक न दिखायी पड़ेगी फिर, जब दूसरा आदमी देखेगा तो उसे हीरा चमकता हुआ दिखायी पड़ेगा। और हीरे की ओट में नाक सुंदर हो जाएगी। जैसे ही स्त्रियां बाहर निकलती हैं, खूब सज-संवर जाती हैं-वही पुरुष भी करते हैं—फिर अगर कोई धक्का मार दे स्त्री को, या कंकड़ फेंक दे, या एक फिल्मी गाना गा दे, तो वह नाराज होती है। और आयोजन यही करके निकली है। इसको मैं कहता हूं, विरोधाभासी चित्त की दशा।
मैं एक विश्वविद्यालय में शिक्षक था। एक दिन बैठा था प्रिंसिपल के कमरे में, कुछ बात करता था, कि एक युवती आयी और उसने शिकायत की कि किसी ने उसे कंकड़ मार दिया। मैं बैठा था तो प्रिंसिपल ने मुझसे कहा कि अब आप ही बताइए क्या करें? यह रोज का उपद्रव है! मैंने उस लड़की की तरफ देखा, मैंने कहा, कंकड़ कितना बड़ा था? उसने कहा, जरा सा था। मैंने कहा, उसने जरा सा मारा यही
आश्चर्य है, तुझे बड़ी चट्टान मारनी थी! तू इतनी सज-संवरकर आयी है, उसने कंकड़ मारा यह बात जंचती नहीं ठीक! इतने सज-संवरकर विश्वविद्यालय आने की जरूरत क्या थी? यहां कोई सौंदर्य-प्रतियोगिता हो रही है? इतने चुस्त कपड़े
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