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________________ जीवन का परम सत्य : यहीं, अभी, इसी में तभी उसका गर्भ गिर गया। नीचे भेड़ों का एक समूह जा रहा था। वह बच्चा, सिंहनी का बच्चा, सिंह - शावक भेड़ों में पड़ गया। सिंहनी तो चली गयी, वह बच्चा भेड़ों बड़ा हुआ। तो स्वभावतः उस बच्चे ने यही जाना कि मैं भेड़ हूं । हम वही तो सीख लेते हैं जो हमें सिखाया जाता है। जिन में तुम बड़े हुए, वही तो तुम हो गए - हिंदू - घर में हुए तो हिंदू, जैन- घर में हुए तो जैन, मुसलमान - घर में हुए तो मुसलमान; हिंदुस्तान में पैदा हुए तो हिंदुस्तानी और चीन में पैदा हुए तो चीनी - जिनके बीच रहे, उन्होंने तुम्हें अपने में ढाल लिया। भेड़ों में बड़ा हुआ तो जानता था कि मैं भेड़ हूं । भेड़ों के साथ ही घसर - पसर चलता था। भेड़ें डरती थीं जैसे छोटी-छोटी चीजों से, ऐसा ही वह भी डरता था । भेड़ों जैसा मिमियाता था। सिंह गर्जना तो उसे आती ही नहीं थी -सुनी ही नहीं थी, पहचान ही न थी उससे । जिसकी पहचान न हो, जिसको सुना ही न हो, वह आए भी तो कहां से आए ! संस्कार ही न था कोई। फिर बड़ा होने लगा - लेकिन था तो सिंह, तो थोड़े ही दिनों में भेड़ों से ऊपर उठ गया । फिर भी याद न आयी, क्योंकि सिंहों के पास दर्पण तो होते नहीं । और भेड़ों ने भी कोई फिकर न की, उसी के साथ बड़ी होती रही थीं तो धीरे-धीरे उसकी आदी हो गयी थीं कि इस ढंग की भेड़ है मान लो, कि इसी तरह की है, इसको यही रंग है । वह बड़ा भी हो गया, लेकिन शाकाहारी का शाकाहारी ! घास-पात खाता था । भेड़ों के साथ घसर-पसर चलता था । लेकिन एक दिन बड़ी अजीब घटना घट गयी। एक बूढ़े सिंह ने भेड़ों के इस झुंड पर हमला किया। वह बूढ़ा सिंह तो चौंककर खड़ा हो गया, वह तो भूल ही गया हमला इत्यादि – इनके बीच में एक जवान सिंह भागा चला जा रहा है ! यह तो उसने कभी सुना न देखा, न शास्त्रों में पढ़ा ! यह हो क्या रहा है ! उसे अपनी आंख पर भरोसा न आया होगा, उसने आंखें मींड़ी होंगी कि यह हुआ क्या, यह बात क्या है, ऐसा तो कभी देखा नहीं ! वह बीच में जैसे भेड़ों में भेड़। वह तो भूल ही गया, भूख-प्यास लगी थी, वह तो भूल ही गया, वह भागा। भेड़ें भागीं, उनके साथ यह युवा सिंह भी भागता रहा, बामुश्किल बूढ़ा सिंह पकड़ पाया। पकड़ा तो मिमियाने लगा, रोने लगा, गिड़गिड़ाने लगा, कहने लगा, छोड़ दो महाराज, मुझे जाने दो, मेरे सब संगी-साथी जाते हैं ! उस बूढ़े ने कहा, ऐसे नहीं जाने दूंगा, यह तो बड़ा चमत्कार है! तुझे हुआ क्या है ? तेरा होश खो गया है ? तेरा होश खो गया है वह भी ठीक, भेड़ों को क्या हुआ? ये तेरे साथ खड़ी कैसे हैं? उसने कहा, मैं भेड़ हूं, इसमें कुछ भी नहीं हुआ, मैं जरा बड़ी भेड़ हूं, मगर मैं हूं तो भेड़ ही। मेरा रंग-ढंग अलग है, ऐसा कभी-कभी हो जाता है। लेकिन मुझे छोड़ो, मुझे जाने दो- उसको पसीना उतरने लगा। लेकिन बूढ़ा सिंह छोड़ा नहीं । घसीटकर ले गया नदी के किनारे, झुका खुद, या उसे और कहा, पानी में देख! जैसे ही उस नए युवा सिंह ने पानी में दो तस्वीरें 331
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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