SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन का परम सत्य : यहीं, अभी, इसी में भी गौर से देख लो-सम्मादिट्ठि-तुम भी सम्यकरूपेण देख लो तो तुम भी मुक्त हो जाओगे। जिसने पाप को गौर से देख लिया, वह पाप के बाहर हो जाता है। यह हाथी जाता रहा होगा उसी तालाब पर जवानी में, अब भी गया है। अनेक महावत आए-नए थे। उन्हें इस हाथी का कोई अनुभव न था। शायद उन्होंने इस बूढ़े हाथी को मारा-पीटा हो, बरछे चुभाए हों, सताया हो कि किसी तरह बाहर निकल आए। लेकिन जो कीचड़ में फंसा है, उसे सताकर तुम बाहर निकालोगे! वैसे ही दुर्बल है और सताओगे! खयाल करना, तुम नरक में पड़े हो और तुम्हारे पंडित-पुजारी तुमसे कहते हैं कि अगर तुम नहीं निकले तो और बड़े नरक में भेज दिए जाओगे। थोड़ी तो दया करो! थोड़ी तो मनुष्यता दिखलाओ! आदमी वैसे ही नरक में पड़ा है। और कहां नरक है! और इससे बदतर क्या नरक होगा! और आप आ गए कि कहते हैं कि अगर नहीं निकले इससे तो और बड़े नरक में भेज दिए जाओगे। इसी से निकलने का उपाय नहीं सूझ रहा है और तुम और बड़े नरक में भेजने का इंतजाम कर रहे हो! लोग सोचते हैं, शायद भय से लोगों के जीवन बदले जा सकें! उन नए महावतों ने भय दिया होगा। सताया होगा। यही तो महावत जानते हैं। मारे होंगे बरछे, उकसाया होगा कि शायद भय में, पीड़ा में, निकल आए बाहर। लेकिन पीड़ा से कोई बाहर नहीं निकलता। पीड़ा मुक्तिदायी नहीं है। पीड़ा तो हमने वैसे ही बहुत झेल ली! तुम क्या सोचते हो, उस बूढ़े महाबलवान हाथी को, जिसका सुंदर अतीत था, कीचड़ में फंसे.देखकर पीड़ा नहीं हो रही होगी! वह मरा जा रहा होगा। वह गड़ा जा रहा होगा। वह प्रार्थना कर रहा होगा कि हे प्रभु, पृथ्वी फट जाए तो मैं इसमें समा जाऊं, मेरी मौत हो जाए, यह दिन देखने को बदा था! कि इस साधारण सी तलैया की कीचड़ में उलझ जाऊंगा और निकल न सकूँगा! यह कमजोरी! यह दुर्बलता! यह दिन देखने को बदा था! और पीड़ा क्या होगी? तुम्हारे बरछे और क्या चुभेंगे? उसका सारा अहंकार चुभा पड़ा है, उसकी सारी अस्मिता चुभी पड़ी है, और तुम उसे मारोगे, पीटोगे! ____ या शायद महावतों ने प्रलोभन दिया हो। सुंदर-सुंदर भोजन सामने रखे हों कि शायद भोजन को देखकर बाहर निकल आए। लेकिन जो कीचड़ में फंसा है, वह भोजन को देखकर भी बाहर निकल नहीं सकता। लोभ और भय काम न करेंगे। और यही दो बातें काम में लायी जाती रही हैं-स्वर्ग का लोभ, नरक का भय। सदियां बीत गयी हैं, तुम्हारे पंडित-पुरोहित तुम्हारे किनारे खड़े हैं तालाब के और चिल्ला रहे हैं कि अगर कीचड़ में ज्यादा देर रहे तो नरक; अगर जल्दी निकल आओ तो स्वर्ग; अगर अभी निकल आओ तो अच्छा इंतजाम कर देंगे स्वर्ग में। मगर न लोभ का कोई परिणाम होता है, न भय का 329
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy