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एस धम्मो सनंतनो
खेलें, संग-संग नाचें! आओ हम रास रचाएं! यह भाषा तो वासना की ही है। कोई विरहिणी जैसे अपने पति के लिए पुकारती हो, या अपने प्रेमी के लिए पुकारती हो। इस भाषा में और उस भाषा में कोई भेद नहीं है। परमात्मा है भी हमारा प्रेमी, हम हैं उसके प्रेमी। सत्य को जब कोई उतनी ही त्वरा से पुकारता है जितनी त्वरा से उसने अपनी कामना के विषयों को पुकारा था, तभी सत्य तक पुकार पहुंचती है। ___तुम्हारी प्रार्थना अगर तुम्हारी वासना से कमजोर है, तो कभी सफल नहीं होगी। तुम्हारी प्रार्थना ऐसी होनी चाहिए कि तुम्हारी सारी वासनाओं की जीवन-ऊर्जा उसमें प्रविष्ट हो जाए। सारी वासनाएं इकट्ठी होकर जब प्रार्थनारत होती हैं, तभी कोई पहुंचता है। __ यह बूढ़ा हाथी फंसा बड़ा कीचड़ में। कीचड़ तुम्हारे भी चारों तरफ है। तुम कीचड़ के ही भरे तालाब में बार-बार स्नान करने जाते हो। आशा यही रखते हो कि शायद कीचड़ में स्नान करने से स्वच्छ हो जाओगे। कीचड़ में स्नान करने से कोई स्वच्छ नहीं होता। और हाथी तो बड़े आदमियों जैसे ही नासमझ होते हैं। शायद इसीलिए आदमी हाथियों को समझदार भी कहता है, क्योंकि दोनों की समझदारी मिलती-जुलती होती है, एक सी होती है। समझदार कहो या नासमझ, मगर दोनों में कुछ बात एक सी होती है। ___ हाथी को कभी नहाते देखा! जब वह नहा लेता है तालाब में और बाहर निकलता है तो अपनी सूंड से धूल को अपने ऊपर फेंककर घर आ जाता है। बड़ा आदमी जैसा है। नहा भी लिए किसी भूल-चूक से, तो उनका चित्त नहीं मानता। बाहर निकलता है तालाब से, सूंड़ में भर लेता है धूल, अपने सारे शरीर पर फेंक लेता है। फिर हो गए जैसे के तैसे।
यही तो तुम मंदिर में जाकर करते हो। किसी तरह प्रार्थना कर भी ली, तो बाहर निकल भी नहीं पाते कि धूल फिर फेंकने लगते हो। अक्सर तो ऐसा होता है कि प्रार्थना कर रहे होते हो, तभी धूल फेंकने लगते हो। मंदिर में हाथ जोड़े खड़े थे, परमात्मा की तरफ आंखें उठायी थीं, एक सुंदर स्त्री आ गयी, भूल गए परमात्मा-वरमात्मा को! प्रार्थना तो कहते रहे परमात्मा की, लेकिन मन किसी और ही बात से भर गया। और अक्सर ऐसा हो जाएगा कि इस स्त्री की मौजूदगी के कारण तुम और जोर-जोर से प्रार्थना करने लगोगे, और हिलने-डुलने लगोगे—अब इसको प्रभावित भी करना है। परमात्मा तो प्रभावित हों या न हों, किसको पता है! मगर यह स्त्री को कम से कम खयाल आ जाए कि बड़े धार्मिक हैं, सत्पुरुष हैं, संत हैं। कीचड़ वहीं डाल लेते हैं हम। हमारी प्रार्थना में ही कहीं वासना आ जाती है।
हम प्रार्थना भी करते हैं तो कुछ मांगते हैं परमात्मा से। परमात्मा को छोड़कर हम सब मांगते हैं-धन मिल जाए, पद मिल जाए, प्रतिष्ठा मिल जाए, कुछ मिल जाए, कि लाटरी का टिकट लग जाए। हम परमात्मा से क्षुद्र मांगते हैं, व्यर्थ मांगते
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