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जीवन का परम सत्य : यहीं, अभी, इसी में
उंडेल देना। इसके पहले कि मौत तुम्हारी छाती पर बैठने लगे, तुम समाधि को निमंत्रण दे देना। इसके पहले कि संसार तुम्हें फेंकने लगे, तुम संन्यास की दुनिया में प्रवेश कर जाना। यह अपमानजनक है कि संसार तुम्हें फेंके, यह सम्मानजनक है कि तुम संसार को कहो कि मैंने हाथ अलग कर लिए। इसमें बड़ा सम्मान है।
इसीलिए हमने संन्यासी को इतना सम्मान दिया। सम्मान का कारण क्या है, कोई पूछे! कारण यही है कि जिसको हम मरते दम तक नहीं छोड़ पाते, उसे संन्यासी ने जीते जी, जीवन की परम शक्ति के क्षणों में भी छोड़ दिया। जिसमें हम फंसे ही रहते हैं, उससे संन्यासी ने मुंह मोड़ लिया। ___ वासना की कीचड़ से तभी अलग हो जाना, जब तुम्हारे पास धमनियों में रक्त बहता हो, हृदय में बल हो, बुद्धि में प्रखरता हो। जवानी का उपयोग कर लेना। परमात्मा तक जाना हो तो जवानी का उपयोग कर लेना। क्योंकि उसके मंदिर में भी नाचते हुए जाना पड़ता है, उत्सव से भरे जाना पड़ता है। वहां मुर्दे और लाशों की तरह मत पहुंचना। स्ट्रेचर पर पड़े हुए मत पहुंचना। नहीं तो वे मंदिर के द्वार भी तुम्हारे लिए नहीं खुलेंगे। भगवान का मंदिर कोई अस्पताल नहीं है! वह महोत्सव है।
जो तुमने जीवन-ऊर्जा वासना की बलिवेदी पर चढ़ायी है, वही वासना की वेदी पर चढ़ायी गयी ऊर्जा जिस दिन तुम प्रार्थना की वेदी पर चढ़ाते हो, उसी दिन धार्मिक हो पाते हो। ऊर्जा वही है, वेदियां बदल जाती हैं। संसार का देवता है, फिर भगवान है. ऊर्जा वही है। __ इसलिए तुम अक्सर पाओगे कि जैसे कोई मजनू लैला के लिए दीवाना होता है, वैसा ही कोई चैतन्य कृष्ण के लिए दीवाना हो जाता है। दीवानगी वही है। जैसे कोई शीरी फरहाद के लिए पागल होती है, वैसे ही कोई मीरा कृष्ण के लिए पागल हो जाती है। पागलपन वही है। अगर तुम मनोवैज्ञानिक को पूछो-खासकर फ्रायडियन मनोवैज्ञानिक को-तो वह तो कहेगा कि यह वासना का ही प्रक्षेपण है। इसमें कुछ बहुत भेद नहीं है। क्योंकि मीरा कृष्ण से वही तो बातें कर रही है जो आमतौर से स्त्रियां अपने प्रेमी से चाहती हैं कि मैंने सेज सजायी है, देखो कितने फूल सेज पर बिछाए हैं और तुम अभी तक नहीं आए। यह भाषा तो कामना की है, वासना की है।
सच, प्रार्थना की भाषा भी कामना की ही भाषा है, सिर्फ मंदिर का देवता बदल गया है। प्रार्थना उतनी ही प्रज्वलित होती है, जितनी वासना। यह वही तेल है, जो वासना में जलता है और वासना के दीए में जलता है, यह वही तेल है जो प्रार्थना के दीए में भी जलता है। ____ इसलिए अगर मीरा कहती है कि सेज मैंने सजायी है, फूल बिछाए हैं, आंखें बिछाए तुम्हारे रास्ते पर बैठी हूं और तुम अभी तक नहीं आए। और मैं तुम्हें पुकार रही हूं, मेरे प्राण-प्यारे, तुम आओ! मैं तुम्हारे लिए नाच रही हूं। आओ हम संग-संग
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