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________________ एस धम्मो सनंतनो प्रसादरूप खिलता है। तुम निमंत्रण भेजो और प्रतीक्षा करो। सदगुरु के पास जाओ, निमंत्रण दे दो, निवेदन कर दो, कि आप पुकारेंगे तो मैं तैयार हूं। ___मेरे पास आते हैं इतने लोग, उसमें तीन तरह के लोग होते हैं। उसमें जो श्रेष्ठतम होता है, वह मुझसे आकर कहता है कि मैं तैयार हूं, अगर आप मुझे पात्र समझें तो संन्यास दे दें। अगर आप समझें! अगर आप समझें कि अभी मेरी तैयारी नहीं, तो मैं प्रतीक्षा करूंगा। आप पर छोड़ता हूं। जो श्रेष्ठतम है वह कहता है, आप पर छोड़ता हूं। जो उससे नंबर दो है, दोयम है, वह कहता है, मैंने तय कर लिया कि मुझे संन्यास लेना है, आप मुझे संन्यास दें। फिर एक नंबर तीन भी है, वह कहता है, आप संन्यास देना चाहते हैं? अगर आप दें तो मैं विचार करूं कि लूं या न लूं। इस पर मैं विचार करूंगा। ___इसमें पहला तो बहुत करीब है भगवान के मंदिर के, द्वार पर खड़ा है। दूसरा ज्यादा दूर नहीं है। तीसरा बहुत दूर है। और चौथे भी लोग हैं, जो आते ही नहीं। उनको तो पता ही नहीं कि भगवान का कोई मंदिर भी होता है, कि संन्यास जैसी भी एक जीवन की दशा होती है कि चैतन्य का एक नृत्य भी होता है, एक संगीत भी होता है, एक काव्य भी होता है। आठवां प्रश्नः क्या बुद्ध के पूर्व भी और बुद्ध हुए हैं? और क्या बुद्ध के बाद भी और बुद्ध हुए हैं? वद्धत्व चेतना की परमदशा का नाम है। इसका व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। -जैसे जिनत्व चेतना की अंतिम दशा का नाम है, इससे व्यक्ति का कोई संबंध नहीं है। जिन अवस्था है। वैसे ही बुद्ध अवस्था है। गौतम बुद्ध हुए, कोई गौतम पर ही बुद्धत्व समाप्त नहीं हो गया। गौतम के पहले और बहुत बुद्ध हुए हैं। खुद गौतम बुद्ध ने उनका उल्लेख किया है। और गौतम बुद्ध के बाद बहुत बुद्ध हुए। स्वभावतः, गौतम बुद्ध उनका तो उल्लेख नहीं कर सकते। बुद्धत्व का अर्थ है-जाग्रत। होश को आ गया व्यक्ति। जिसने अपनी मंजिल पा ली। जिसको पाने को अब कुछ शेष न रहा। जिसका पूरा प्राण ज्योतिर्मय हो उठा। अब जो मृण्मय से छूट गया और चिन्मय के साथ एक हो गया। इस छोटी सी झेन-कथा को समझो एक दिन सदगुरु पेन ची ने आश्रम में बुहारी दे रहे भिक्षु से पूछा, भिक्ष, क्या कर रहे हो? भिक्षु बोला, जमीन साफ कर रहा हूं, भंते। सदगुरु ने तब एक बहुत ही 306
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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