________________
हम अनंत के यात्री हैं
इस छोटी सी कहानी को समझो
-अंगार ने ऋषि की आहुतियों का घी पीया, और हव्य के रस चाटे। कुछ देर बाद वह ठंडा होकर राख हो गया और कूड़े की ढेरी पर फेंक दिया गया। ऋषि ने जब दूसरे दिन नए अंगार पर आहुति अर्पित की तो राख ने पुकारा, क्या आज मुझसे रुष्ट हो, महाराज! ऋषि की करुणा जाग उठी और उन्होंने पात्र को पोंछकर एक आहुति राख को भी अर्पित की। तीसरे दिन ऋषि जब नए अंगार पर आहुति देने लगे, तो राख ने गुर्राकर कहा, अरे, तू वहां क्या कर रहा है, अपनी आहुतियां यहां क्यों नहीं लाता? ऋषि ने शांत स्वर में उत्तर दिया, ठीक है राख, आज मैं तेरे अपमान का ही पात्र हूं, क्योंकि कल मैंने मूर्खतावश तुझ अपात्र में आहुति अर्पित करने का पाप किया था।
अपात्र को भी सदगुरु तो देने को तैयार होता है, लेकिन अपात्र लेने को तैयार नहीं। अपात्र का मतलब ही यह होता है कि जो लेने को तैयार नहीं। तो देने से ही थोड़े ही कुछ हल होता है। मैं देने को तैयार हूं, अगर तुम लेने को तैयार न हो, तो मेरे देने का क्या सार होगा? तुम जब तक तैयार नहीं हो, तुम्हें कुछ भी नहीं दिया जा सकता। स्थूल चीजें नहीं दी जा सकतीं, तो सूक्ष्म की तो बात ही छोड़ दो। मैं कोई स्थूल चीज तुम्हें भेंट दूं-फूलों का एक हार भेंट दूं-और तुम फेंक दो। स्थूल चीज भी नहीं दी जा सकती। तो सूक्ष्म-मैं तुम्हें संन्यास दं, मैं तुम्हें ध्यान दं, मैं तुम्हें प्रेम दूं-तुम उसे भी फेंक दोगे। ____ अपात्र का अर्थ खयाल रखना। अपात्र का अर्थ यह है, जो लेने को तैयार नहीं। जो पात्र नहीं है अभी। जो अभी पात्र बनने को राजी नहीं है। पात्र का अर्थ होता है, जो खाली है और भरने को तैयार है। अपात्र का अर्थ होता है जो बंद है और भरने से डरा है और खाली ही रहने की जिद्द किए है। फिर अगर अपात्र को दो तो वह फेंकेगा। और अपात्र को अगर दो तो वह दुर्व्यवहार करेगा-हीरों के साथ कंकड़-पत्थरों जैसा दुर्व्यवहार करेगा। . इसलिए तुम्हारे प्रश्न को समझने की कोशिश करो।
'मैंने सुना है कि अपात्र व्यक्तियों को संन्यास की दीक्षा नहीं दी जाती।' ___ ऐसा नहीं कि सदगुरु नहीं देना चाहते, देना चाहते हैं, मगर अपात्र लेते नहीं।
और कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि अपात्र ऊपर से कहता हो कि मैं लेना चाहता हूं। लेकिन सदगुरु तुम्हारे भीतर देखता है, तुम्हारे ऊपर की बात नहीं है। तुम्हारी वाणी की बात नहीं है, तुम्हारे प्राण की बात है। वह देखता है, तुम भीतर से तैयार हो कि ऊपर से? ऊपर से तुम किसी और कारण से लेने को राजी हो गए होओ। ___ यहां मेरे पास लोग आ जाते हैं। वे कहते हैं, संन्यास चाहिए। जब मैं उनसे जरा बात करता हूं कि किसलिए चाहिए? क्या बात है? क्या कारण है? तो कारण ऐसे मिलते हैं जिनका संन्यास से कोई भी संबंध नहीं हो सकता।
303