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________________ एस धम्मो सनंतनो करोगे फिर, आखिर कब तक चलाते रहोगे ! और भी काम हैं दुनिया में, धर्म कोई एक ही काम तो नहीं, फुर्सत किसको है ! जिनको प्रार्थना करने की फुर्सत नहीं, उन्हें मेरा विरोध करने की फुर्सत भी कितनी देर तक रहेगी, यह तो सोचो! आखिर वे राजी हो कि ठीक है, अब छोड़ो, भूलो! जिस दिन वे राजी हो गए, उसी दिन मैंने जबलपुर छोड़ दिया। फिर कोई सार न रहा वहां रहने का । फिर मैंने बंबई में अड्डा जमा लिया। फिर धीरे-धीरे बंबई के लोग भी राजी होने लगे कि ठीक है, तब मैं पूना आ गया। अब पूना के लोग भी राजी होने के करीब आ रहे हैं- अब मैं क्या करूं! जाने का वक्त करीब आ गया। अब पूना में कोई नाराज नहीं है। मुझे पत्र आते हैं मित्रों के, पूना के संन्यासियों के कि अब आप छोड़ते हैं, जब कि सब ठीक-ठाक हुआ जा रहा है ! अब लोग नाराज भी नहीं हैं, उतना विरोध भी नहीं कर रहे हैं। लोगों की सीमा है। अगर तुम धैर्य रखे रहो, तो वे हार जाते हैं, क्या करेंगे ! कब तक सिर फोड़ेंगे! मगर जैसे ही यह बात हो जाती है, फिर बदलने का वक्त आ जाता है। अब कहीं और जाएंगे, कहीं और जहां लोग सिर फोड़ेंगे, वहां जाएंगे। समस्या के कारण नहीं बदली जाती हैं जगहें । समस्याएं हल हो जाती हैं, तो फिर बदल लेते हैं- अब यहां करेंगे भी क्या, मरीज न रहे। जितने लोगों को लाभ हो सकता था, उन्होंने लाभ ले लिया; जो अभागे हैं, उनके लिए बैठे रहने से कुछ लाभ नहीं। अब कहीं और किसी और कोने से ! कहीं और भी लोग प्रतीक्षा करते हैं। यही उचित है। , काफी समय रह लिया यहां । जो ले सकते थे लाभ, उन्होंने ले लिया, उनके कंठ भर गए। जिनके लिए आया था, उनका काम पूरा हो गया। ऐसे तो बहुत भीड़ है पूना में, उससे मेरा कोई लेना-देना नहीं, उनके लिए मैं आया भी नहीं था; उनके लिए मैं आया भी नहीं, उनके लिए मैं यहां रहा भी नहीं। यहां दुनिया में कोने-कोने से लोग आ रहे हैं, लेकिन यहां पड़ोस में लोग हैं जो यहां नहीं आए। जिनके लिए मैं आया था, उनका काम पूरा हुआ। अब कहीं और! समस्या के कारण कोई बदलता नहीं – कोई बुद्ध नहीं बदलता समस्या के कारण । 302 सातवां प्रश्नः मैंने सुना है कि अपात्र व्यक्तियों को संन्यास की दीक्षा नहीं दी जाती है। ऐसा क्यों ? क्या अपात्र सदगुरु की करुणा के हकदार नहीं हैं?
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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