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एस धम्मो सनंतनो
के शास्त्र भी कहते हैं-ठीक यही का यही। पागल हाथी के पैर के नीचे दबकर मर जाना बेहतर है, लेकिन जैन-मंदिर में शरण मत लेना। अगर जैन-मंदिर के पास से निकलते हो और जैन-गुरु कुछ समझा रहा हो तो अपने कानों में अंगुलियां डाल लेना, सुनना मत।
ये धार्मिक आदमी के लक्षण हैं? तो फिर अधार्मिक के क्या लक्षण होंगे?
बुद्ध कहते हैं-कुछ और मेरी विशिष्टता न थी; जब मैं शंख नामक ब्राह्मण था किसी जन्म में, तो मेरी इतनी ही विशिष्टता थी-छोटी ही समझो, बीजमात्रकि मैं सभी बुद्धपुरुषों को नमस्कार करता था; सभी चैत्यों में जाता, सभी शिवालयों में जाता और प्रार्थना कर आता था, पूजा कर आता था। मैंने कोई भेदभाव न रखा था। उस अभेद दृष्टि से यह धीरे-धीरे बीज फैला।
जो अभेद को देखेगा, वह एक दिन अभेद को उपलब्ध हो जाएगा। जिसने मिट्टी के दीयों का हिसाब रखा, वह दीयों में ही पड़ा रहेगा। जिसने ज्योति देखी, वह एक दिन ज्योतिर्मय हो जाएगा। तुम जो देखते हो वही हो जाते हो। दृष्टि एक दिन तुम्हारे जीवन की सृष्टि हो जाती है।
तो बुद्ध कहते हैं, आज यह जो चमत्कार हुआ, इसका बीज बड़ा छोटा है।
अब समझना। मैंने इसलिए कहा कि दो तल पर यह कथा है। एक तल पर तो बुद्ध का आना महामारी से भरी हुई वैशाली में, वह एक तल है। फिर दूसरा तल है, भिक्षुओं का बुद्ध से पूछना। बुद्ध कोई अवसर नहीं चूकते। उन्होंने अपने भिक्षुओं को भी संदेश दे दिया कि कैसा भाव होना चाहिए। अगर कभी तुम अमृत को उपलब्ध करना चाहते हो, मृत्यु के विजेता होना चाहते हो, वस्तुतः जिन होना चाहते हो, तो भेद मत करना। सभी बुद्धपुरुष, सभी जाग्रतपुरुष एक ही सत्य को उपलब्ध हो गए हैं—इस बीज को अपने भीतर जितने गहराई में डाल सको डाल देना। इसी से किसी दिन वृक्ष पैदा होगा, फूल लगेंगे। ठीक समय, ठीक अवसर पर तुम्हारे जीवन में बसंत आ जाएगा। तब न केवल तुम्हारे भीतर बसंत आएगा, तुम जहां से गुजर जाओगे वहां भी बसंत की हवा बहेगी। तुम जिनके साथ खड़े हो जाओगे, उनके भीतर भी ज्योति पैदा होगी। तुम जिनका हाथ पकड़ लोगे, उनका जीवन से छुटकारा होना शुरू हो जाएगा। तुम्हारा जो सहारा पकड़ लेंगे, तुम उनके लिए नाव बन जाओगे।
'थोड़े सुख के परित्याग से यदि अधिक सुख का लाभ दिखायी दे तो धीरपुरुष अधिक सुख के खयाल से अल्पसुख का त्याग कर दे।' ___ और बुद्ध ने कहा, यह छोटा सा गणित याद रखो कि कभी-कभी ऐसा होता है कि आज हमें लगता है कि इसमें खूब सुख है और हमें यह भी दिखायी पड़ता है कि अगर इसका त्याग कर दें तो कल अनंतगुना सुख हो सकता है, लेकिन वह कल होगा, तो हम आज के ही सुख को पकड़ लेते हैं। कल के अनंत गुने को छोड़ देते
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