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मृत्यु की महामारी में खड़ा जीवन
लेकिन उसका ऐसा महान फल हुआ है। बीज तो होते भी छोटे ही हैं। पर इससे पैदा हुए वृक्ष, छोटे से बीज से पैदा हुए वृक्ष आकाश के साथ होड़ लेते हैं। थोड़ा सा त्याग भी, अल्पमात्र त्याग भी महासुख लाता है।
कुछ बड़ा मैंने त्याग भी न किया था उस जन्म में, इतना ही त्याग किया था, अपना-पराया छोड़ दिया था। सभी जाग्रतपुरुषों को बेशर्त आदर दिया था।
समझते हो, यह धार्मिक आदमी का लक्षण है। छोटा मत समझना इसे, बुद्ध कितना ही कहें कि अल्पमात्र, यह छोटा नहीं है। तुम मस्जिद के सामने से ऐसे ही गुजर जाते हो जैसे मस्जिद है ही नहीं । तुम गुरुद्वारे के सामने से ऐसे निकल जाते हो जैसे गुरुद्वारा है ही नहीं। अगर तुम मुसलमान हो तो हिंदू का मंदिर तुम्हें दिखायी नहीं पड़ता। अगर तुम हिंदू हो तो जैन का मंदिर तुम्हें दिखायी नहीं पड़ता । यह धार्मिक होने का लक्षण न हुआ । यह तो राजनीति हुई। यह तो समूह और संप्रदाय और धारणा और सिद्धांत से बंधे होना हुआ।
धार्मिक व्यक्ति को तो जहां भी दीए जले हैं, जिसके भी दीए जले हैं, वे सभी दीए परमात्मा के हैं । फिर नानक का दीया जला हो गुरुद्वारे में तो कोई फर्क नहीं पड़ता, वहां भी झुक आएगा। फिर राम का दीया जला हो राम के मंदिर में, वहां भी झुक आएगा। फिर कृष्ण का दीया हो, वहां भी झुक आएगा। फिर मोहम्मद का दीया हो, वहां भी झुक आएगा । धार्मिक व्यक्ति ने तो एक बात सीख ली है कि जब भी कहीं कोई दीया जलता है तो परमात्मा का ही दीया जलता है।
बुझे दीए संसार के, जले दीए भगवान के । बुझे बुझों में भेद होगा, जले जलों में कोई भेद नहीं है । बुझा दीया एक तरह का, दूसरा बुझा दीया दूसरे तरह का ! मिट्टी अलग होगी, कोई चीनी का बना होगा, कोई लोहे का बना होगा, कोई सोने का बना होगा, कोई चांदी का बना होगा। स्वभावतः, मिट्टी के दीए और चांदी के दीए में बड़ा फर्क है। लेकिन जब ज्योति जलेगी तो ज्योति कहीं चांदी की होती है, कि सोने की होती है, कि मिट्टी की होती है ! ज्योति तो सिर्फ ज्योति की होती है। ज्योति को जो देखेगा, उसको तो सभी जले दीयों में एक ही ज्योति का निवास दिखायी पड़ेगा। एक
सूरज उतर आया है, एक ही किरण प्रविष्ट हो गयी है ।
इसको बुद्ध तो कहते हैं अल्प, लेकिन मैं न कहूंगा अल्प। क्योंकि यह अल्प भी हो नहीं रहा है। लोग सोचकर जाते हैं, अपना मंदिर, अपना गुरु, अपना शास्त्र । दूसरे का मंदिर तो मंदिर ही नहीं है। दूसरे के मंदिर में जाना तो पाप। ऐसे शास्त्र हैं इस देश में... I
जैन-शास्त्रों में लिखा है— ऐसा ही हिंदू - शास्त्रों में भी लिखा है— कि अगर कोई पागल हाथी तुम्हें रास्ते पर मिल जाए, जैन- शास्त्र कहते हैं, और तुम मरने की हालत में आ जाओ, और पास में ही हिंदुओं का देवालय हो, तो हाथी के पैर के नीचे मर जाना बेहतर, लेकिन हिंदुओं के देवालय में शरण मत लेना। ऐसा ही हिंदू
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