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एस धम्मो सनंतनो
हुई थी यात्रा की, लेकिन बुद्ध को उन्होंने रोका नहीं।
बुद्ध के भिक्षुओं ने पूछा होगा किसी ने राह में जाते वक्त—यह चमत्कार कैसे हुआ? भगवान ने कहा-भिक्षुओ, बात आज की नहीं है।
बुद्ध बड़े वैज्ञानिक हैं। वह प्रत्येक चीज की श्रृंखला जोड़ते हैं। विज्ञान का अर्थ होता है, कार्य-कारण का नियम। अगर वृक्ष है, तो बीज रहा होगा। अगर बीज था, तो पहले भी वृक्ष रहा होगा। अगर वृक्ष था, तो उसके भी पहले बीज रहा होगा। एक चीज से दूसरी चीज पैदा होती है, सब चीजें संयुक्त हैं, कार्य-कारण का जाल फैला हुआ है। यहां अकारण कुछ भी नहीं होता, सब सकारण है। बुद्ध का इस पर बहुत जोर था। इस सकारण होने की धारणा का ही नाम कर्मवाद है।
तो बुद्ध से जब भी कोई कुछ पूछता है तब वह तत्क्षण श्रृंखला की बात करते हैं। वे कहते हैं, किसी कृत्य को आणविक रूप से मत लेना, एटामिक मत लेना, . कोई कृत्य अपने में पूरा नहीं है, उस कृत्य का जोड़ कहीं पीछे है और कहीं आगे भी।
तो बुद्ध ने कहा-बात आज की नहीं है। बीज बहुत पुराना है, वृक्ष जरूर आज हुआ है। ___जब भी बुद्ध के शिष्य उनसे पूछते हैं उनके संबंध में कोई बात, वह उन्हें अपने अतीत जीवनों में ले जाते हैं। वह बड़ी गहरी खोज करते हैं कि कहां से यह संबंध जुड़ा होगा, कैसे यह घटना शुरू हुई होगी। बीज से ही शुरुआत करो तो ही वृक्ष को समझा जा सकता है। कारण को ठीक से समझ लो तो कार्य समझा जा सकता है। सूक्ष्म को ठीक से समझ लो तो स्थूल समझा जा सकता है। क्योंकि सारे स्थूल की प्रक्रियाएं सूक्ष्म में छिपी हैं। __वृक्ष जरूर आज हुआ है, बुद्ध ने कहा। मैं पूर्वकाल में शंख नामक ब्राह्मण होकर प्रत्येक बुद्धपुरुष के चैत्यों की पूजा किया करता था।
प्रत्येक बुद्धपुरुष की! ऐसा कोई हिसाब न रखता था कि कौन जैन, कौन हिंदू, कौन अपना, कौन पराया, कौन श्रमण, कौन ब्राह्मण, ऐसी कोई चिंता न रखता था। जो भी जाग गए हैं, उन सभी की पूजा करता था। गांव में जितने मंदिर थे, सभी पर फूल चढ़ा आता था। ऐसी निष्पक्ष भाव से मेरी पूजा थी। कुछ बहुत बड़ा काम न था। लेकिन, बुद्ध ने कहा, उसका ही जो बीज मेरे भीतर पड़ा रहा, उससे ही चमत्कार हुआ है। वह जो निष्पक्ष भाव से पूजा की थी, वह जो निष्कपट भाव से पूजा की थी, अपना-पराया न देखा था, वही बीज खिलकर आज इस जगह पहुंच गया है कि मैं अमृत को उपलब्ध हुआ हूं। और जिनका मुझसे साथ हो जाता है, जो मुझे किसी भी कारण पुकार लेते हैं अपने पास, उनको भी अमृत की झलक मिलने लगती है, उनके जीवन से भी मृत्यु विदा होने लगती है। ___मैं प्रत्येक बुद्धपुरुष के चैत्यों की पूजा किया करता था। और यह जो कुछ हुआ, उसी के विपाक से हुआ है। जो उस दिन किया था वह तो अल्प था, अत्यल्प था,
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