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________________ मृत्यु की महामारी में खड़ा जीवन खिले तो खिले, फिर मुझते नहीं। इस कथा को दोनों तल पर समझना। लोग अति प्रसन्न थे। और भगवान ने जब वैशाली से विदा ली तो लोगों ने महोत्सव मनाया था। उनके हृदय आभार और अनुग्रह से गदगद थे। और तब किसी भिक्षु ने भगवान से पूछा- यह चमत्कार कैसे हुआ? लोगों का दुख मिट गया है, लोग शांत हुए हैं, लोगों की मृत्यु से दृष्टि हट गयी, महामारी विदा हो गयी, सूखे वृक्षों पर पत्ते आ गए हैं, जिन्होंने कभी जीवन का रस न जाना था उनमें जीवन की रसधार बही, यह चमत्कार कैसे हुआ? । लोग अति प्रसन्न थे। यद्यपि और बहुत कुछ हो सकता था, लेकिन दुख में पकारो तो इतना ही हो सकता है। इससे ज्यादा हो सकता था, अगर सुख में पुकारते। जब दुखी थे तो भगवान को ले आए थे, जब सुखी हो गए तो रोकना न चाहा। तब रोक लेना था, कहते कि अब कहां जाते हैं। अब तो न जाने देंगे। जिससे दुख में इतना मिला था, काश उसे रोक लेते सुख में भी, तो फिर सब कुछ मिल जाता! लेकिन सोचा होगा, बात तो पूरी हो गयी, अब क्यों रोकना? अब क्या प्रयोजन? सुख आया कि फिर हम फिर भूलने लगते हैं, फिर हम विदा देते हैं। हम कहते हैं, अब जब जरूरत होगी तब फिर याद कर लेंगे। हम भगवान का भी उपयोग करते हैं। और यह भगवान का उपयोग बड़ा छोटा है। यह तो ऐसे ही है जैसे कोई तलवार से एक चींटी को मारे। चींटी को मारने के लिए तलवार की क्या जरूरत है? भगवान की मौजूदगी से सिर्फ दुख मिटे, तो यह तुमने तलवार का उपयोग चींटी मारने के लिए किया। चींटी तो बिना ही तलवार के मारी जा सकती थी। यहां मेरी दृष्टि तुम्हें समझा देना चाहता हूं। इसलिए मैं विज्ञान का पक्षपाती हूं। मैं कहता हूं, यह काम तो विज्ञान से हो सकता है, इसके लिए धर्म की कोई जरूरत नहीं। बीमारी तो विज्ञान से दूर हो सकती है, दरिद्रता तो विज्ञान से दूर हो सकती है, विक्षिप्तता तो विज्ञान से दूर हो सकती है, देह की और मन की आधियां और व्याधियां तो विज्ञान से दूर हो सकती हैं, इसके लिए धर्म की कोई जरूरत नहीं है। धर्म की तो तब जरूरत है जब विज्ञान अपना काम पूरा कर चुका, तुम सब भांति सुखी हो, अब महासुख चाहिए। इसलिए मैं विज्ञान का पक्षपाती हूं। तो मैं मानता हूं, विज्ञान का कुछ काम है। ___ मेरे पास लोग आ जाते हैं, वे कहते हैं कि लड़के को नौकरी नहीं मिलती, कि पत्नी बीमार है, कि बेटी को वर नहीं मिल रहा है, आप कुछ करें। मैं कहता हूं कि इन बातों का इंतजाम तुम खुद ही कर ले सकते हो, कर ही लोगे, कुछ न कुछ हो ही जाएगा, इन बातों के लिए मेरे पास मत आओ। कुछ और बड़ा नहीं खोजना है? कुछ और विराट की दिशा में यात्रा नहीं करनी है? गांव के लोग प्रसन्न थे, अति प्रसन्न थे। बहुत छोटा ही पाया था, शुरुआत ही 15
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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