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एस धम्मो सनंतनो
इसलिए अपने से छोटे व्यक्तियों का साथ मत खोजना-अक्सर हम खोजते हैं; क्योंकि अपने से छोटे के साथ एक मजा है, क्योंकि हम बड़े मालूम होते हैं। अपने से छोटे के साथ एक रस है, अहंकार की तृप्ति मिलती है। दुनिया में लोग अपने से छोटे का साथ खोजते रहते हैं। अपने से बड़े के साथ तो अड़चन होती है।
तुमने सुना न, ऊंट जब हिमालय के पास पहुंचा तो उसे बड़ा दुख हुआ। उसने हिमालय की तरफ देखा ही नहीं, वह रास्ता बदलकर वापस अपने मरुस्थल में लौट आया। ऊंट को हिमालय के पास बड़ी पीड़ा होती है, क्योंकि ऊंट को पहली दफा पता चलता है कि अरे, मैं कुछ भी नहीं हूं। ऊंट को तो रेगिस्तान जमता है, जहां वह सब कुछ है, सबसे ऊंची चीज है।
अक्सर यह होता है, यह मन की एक बहुत बुनियादी प्रक्रिया है कि हम अपने से छोटे को खोज लेते हैं । यह रोज होता है, सब दिशाओं में होता है । राजनेता अपने से छोटे छुटभइयों को खोज लेते हैं। अपने से छोटे लोगों पर ही अपने अहंकार को बसाया जा सकता है, और कोई उपाय नहीं है ।
सत्संग का अर्थ है, अपने से बड़े को खोजना। वह मन की प्रक्रिया के विपरीत जाना है, वह ऊर्ध्वगमन है, वह मन का नियम तोड़ना है। क्योंकि अगर अपने से छोटे को खोजा तो तुम्हारा अहंकार मजबूत होगा, अपने से बड़े को खोजा तो तुम्हारा अहंकार विसर्जित होगा। अपने से बड़े को खोजा तो उसकी दूर जाती हुई किरणें तुम्हें भी दूर ले जाने लगेंगी, उसके भीतर हुआ प्रकाश तुम्हारे भीतर सोए प्रकाश को भी तिलमिला देगा। उसकी चोट तुम्हें जगाएगी – सिर्फ मौजूदगी ।
सत्संग अनूठा शब्द है, दुनिया की किसी भाषा में ऐसा कोई शब्द नहीं है; क्योंकि दुनिया में कभी इस बात को ठीक से खोजा ही नहीं गया है जैसा हमने इस देश में खोजा । सत्संग अनूठा शब्द है। इसका मतलब है, सिर्फ उसके साथ हो जाना जिसे सत्य मिल गया हो। सिर्फ उसके पास हो जाना, बैठ जाना - चाहे चुप बैठे रहो तो भी चलेगा — उसके संग-साथ हो लेना; उसके और अपने बीच की दीवालें गिरा देना, अपने ऊपर कोई रक्षा का इंतजाम न करना, अपने हृदय को खोल देना कि अब जो हो हो, उसकी तरंगों को अपने भीतर आने देना; उसकी स्वरलहरी को गूंजने देना, धीरे-धीरे तुम उसमें डुबकी लगा लोगे । उसको अमृत मिला है, तुम्हें भी अमृत की तरफ पहले-पहले अनुभव आने शुरू हो जाएंगे, झरोखा खुलेगा ।
मृत्यु पर तो अमृत की ही विजय हो सकती है। फिर जल भी बरसा, फिर वृक्षों में पत्ते आए; फिर फूल खिले, जहां फूल खिलने बंद हो गए थे, जहां जीवन सूखा जा रहा था वहां नए पल्लव लगे।
एक जीवन है बाहर का और एक जीवन है भीतर का, सत्संग की वर्षा हो जाए भीतर के जीवन में फूल आने शुरू होते हैं। वे ही फूल वास्तविक फूल हैं, क्योंकि वे टिकेंगे, उनकी सुगंध सदा रहेगी; सुबह खिले सांझ मुर्झा गए, ऐसे फूल नहीं;
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