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मृत्यु की महामारी में खड़ा जीवन
हैं। इसलिए हम दीन रह जाते हैं, दरिद्र रह जाते हैं। समझो कि तुम्हारे पास मुट्ठीभर अन्न है, तुम आज खा लो उसे, तो थोड़ा सा सुख मिलेगा। लेकिन अगर तुम इसे बो दो-तो शायद दो-चार महीने प्रतीक्षा करनी पड़ेगी लेकिन बड़ी फसल पैदा होगी। शायद सालभर के लायक भोजन पैदा हो जाए।
तो बुद्ध कहते हैं, बुद्धिमान कौन है? बुद्धिमान वह है, जो अल्प को छोड़कर विराट को उपलब्ध करने में लगा रहता है। जो जीवन के आत्यंतिक गणित पर सदा ध्यान रखता है कि जो मैं कर रहा हूं, इसका अंतिम फल क्या होगा? आज का ही सवाल नहीं है, इसका आत्यंतिक परिणाम क्या होगा?
स्वभावतः, उस दिन जब बुद्ध शंख नाम के ब्राह्मण थे, थोड़ी अड़चन हुई होगी। अगर जैनों के मंदिर में गए होंगे तो हिंदुओं ने कहा होगा, तू वहां क्यों जाता है-ब्राह्मण थे-कष्ट हुआ होगा। अगर हिंदुओं के मंदिर में गए होंगे तो जैनों ने कहा होगा, कि तू तो हमारे मंदिर में आता है, अब वहां क्यों जाता है ? कष्ट हुआ होगा। गांव में शायद पागल समझे जाते होंगे।
तुम जरा सोचो कि तुम सब मंदिर-मस्जिद में जाकर नमस्कार करने लगो, लोग समझेंगे दिमाग खराब हो गया। जिनका दिमाग खराब है, वे समझेंगे कि तुम्हारा दिमाग खराब हो गया। कष्ट हुआ होगा। प्रतिष्ठा गंवायी होगी। लोगों ने पागल समझा होगा।
लेकिन बुद्ध कहते हैं, वह छोटा सा त्याग था, क्या फर्क पड़ता है कि लोगों ने पागल समझा ! क्या फर्क पड़ता था अगर लोग समझते कि मैं पागल नहीं हूं! कुछ भी फर्क नहीं पड़ता था। लेकिन उसका जो परिणाम हुआ, व्यापक है।
जब गंगा पैदा होती है तो बूंद-बूंद पैदा होती है। गोमुख से गिरती है गंगोत्री, तुम अपनी मुट्ठी में सम्हाल ले सकते हो। फिर रोज बड़ी होती जाती है, बड़ी होती जाती है। जब गंगा सागर में गिरती है तब तुम विश्वास भी न कर सकोगे कि यह वही गंगा है जो गोमुख से गिरती है। जो गंगोत्री में बूंद-बूंद टपकती है, जिसको तुम मुट्ठी में बांध ले सकते थे, यह वही गंगा है? पहचान नहीं आती।
बीज छोटा, वृक्ष बहुत बड़ा हो जाता है। बुद्धिमान व्यक्ति अल्पसुख को छोड़ता चले महासुख के लिए। छोटे को न पकड़े, क्षुद्र को न पकड़े, विराट पर ध्यान रखे। ___'दूसरे को दुख देकर जो अपने लिए सुख चाहता है, वह वैर-चक्र में फंसा हुआ व्यक्ति कभी वैर से मुक्त नहीं होता।' । ____ और बुद्ध ने कहा, सुख तो सभी चाहते हैं, मगर सुख की चाह में एक बात खयाल रखना-पहला तो सूत्र कहा, अल्पसुख को छोड़ देना महासुख के लिए; दूसरा सूत्र कहा- यह खयाल रखना कि सुख तो चाहना, लेकिन दूसरे के दुख पर तुम्हारा सुख निर्भर न हो। दूसरे के दुख पर आधारित सुख तुम्हें अंततः दुख में ही ले जाएगा, महादुख में ले जाएगा।