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________________ एस धम्मो सनंतनो जाग्रतपुरुष थे, इसलिए जाग्रत का और सोए का संबंध हो तो कुछ लाभ होता। अब ये जो व्याख्याकार हैं, ये इतने ही सोए हुए हैं जितने तुम सोए हुए हो, यह सोए से सोए का संबंध है, तो बनता है संगठन। __ मगर फिर भी ये जो व्याख्या करते हैं, कम से कम बुद्ध के वचनों की करते हैं। दूर की ध्वनि सही, बहुत दूर की ध्वनि, बुद्ध को पुकारे समय हो गया, लेकिन शायद इन्होंने बुद्ध की बात सुनी थी, उसको विकृत भी कर लिया होगा, उसको काटा-छांटा भी होगा, तोड़ा-मरोड़ा भी होगा, फिर भी कुछ बुद्ध की बात तो उसमें शेष रह ही जाएगी, कुछ रंग तो रह ही जाएगा। तुम इस बगीचे से गुजर जाओ, घर पहुंच जाओ, बगीचा दूर रह गया, वृक्ष दूर रह गए, फूल दूर रह गए, फिर भी तुम पाओगे, तुम्हारे वस्त्रों में थोड़ी सी गंध चली आयी। वस्त्र याद दिलाएंगे कि बगीचे से होकर गुजरे हो। थोड़े रंगे रह गए, तो संगठन। जब यह रंग भी खो जाता है, जब व्याख्याकारों की भी व्याख्या होने लगती है, जब व्याख्याकार भी मौजूद नहीं रह जाते, जिन्होंने बुद्ध को देखा, सुना, समझा; अब इनको सुनने, समझने वाले व्याख्या करने लगते हैं तो फिर बहुत दूरी हो गयी, तब स्थिति हो जाती है समूह की। अब तो सोए-सोए अंधे अंधों को मार्ग दिखाने लगते हैं। समझो कि बुद्ध के पास आंख थी, बुद्ध के व्याख्याकारों के पास कम से कम चश्मा था, ये जो व्याख्याकारों के व्याख्याकार हैं, इनके पास चश्मा भी नहीं। ये ठीक तुम जैसे अंधे हैं। शायद तुमसे ज्यादा कुशल हैं बोलने में, शायद तुमसे ज्यादा कुशल हैं तर्क करने में, शायद तुमसे अच्छी इनकी स्मृति है, शायद तुमसे ज्यादा इन्होंने अध्ययन किया है, पर और कोई भेद नहीं है, चेतनागत कोई भेद नहीं है। इतना भी भेद नहीं है कि ये बुद्ध के सान्निध्य में रहे हों। इतना भी भेद नहीं है, तो समूह। फिर एक ऐसा समय भी आता है, जब ये भी नहीं रह जाते, जब कोई व्यवस्था नहीं रह जाती, व्यवस्थामात्र जब शून्य हो जाती है और जब अंधे एक-दूसरे से टकराने लगते हैं, उसका नाम भीड़ है। ___ इन चार शब्दों का अलग-अलग अर्थ है। संघ, शास्ता जीवित है। संगठन, शास्ता की वाणी प्रभावी है। समूह, शास्ता की वाणी भी खो गयी लेकिन अभी कुछ व्यवस्था शेष है। भीड़, व्यवस्था भी गयी; अब सिर्फ अराजकता है। ___ मैं संघ के पक्ष में हूं। संगठन के पक्ष में नहीं। समूह के तो होऊंगा कैसे! भीड़ की तो बात ही छोड़ो!! जब तुम्हें कभी कोई जीवित जाग्रतपुरुष मिल जाए, तो डूब जाना उसके संघ में। ऐसे अवसर बहुत कम आते हैं पृथ्वी पर, कभी-कभी आते हैं, उसको चूकना मत। उसको चूके तो बहुत पछताना होता है। और फिर पछताने से भी कुछ होता नहीं। फिर 292
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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