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हम अनंत के यात्री हैं ही लगता है— जैसा ! लेकिन रेकार्ड रेकार्ड है । और अगर जीवित व्यक्ति तुम्हें न बदल सका तो रेकार्ड तुम्हें कैसे बदलेगा ?
संघ जब मर जाता अर्थात जब शास्ता विदा हो जाता, तो संगठन पैदा होता है। शास्ता के वचन रह जाते हैं। जैसे सिक्खों के दस गुरु हुए। जब तक दस गुरु थे, तब तक सिक्ख धर्म संघ था। जिस दिन अंतिम गुरु ने तय किया कि अब कोई गुरु नहीं होगा और गुरुग्रंथ ही गुरु होगा, उसी दिन से संगठन । जब तक बुद्ध थे, तब तक संघ। जब बुद्ध जा चुके, भिक्षु इकट्ठे हुए और उन्होंने अपनी-अपनी स्मृतियों को उंडेलकर रेकार्ड तैयार किया कि बुद्ध ने किससे कब क्या कहा था, किसने कब बुद्ध को क्या कहते सुना था, सब भिक्षुओं ने अपनी स्मृतियां टटोलीं और सारी स्मृतियों का संग्रह किया, तीन शास्त्र बने – त्रिपिटक। सारे भिक्षुओं ने अपनी स्मृति उंडेलकर, जो-जो बुद्ध ने कहा था, जिसने जैसा समझा था वैसा इकट्ठा कर दिया, तब संगठन बना। बुद्ध तो गए, याद रह गयी ।
फिर एक घड़ी ऐसी आती है कि बीच में शास्ता तो होता ही नहीं, शास्त्र भी नहीं होता, तब उस स्थिति को हम कहते हैं— समूह | हम ही आपस में तय करते हैं कि हमारा अनुशासन क्या हो। हम कैसे उठें, कैसे बैठें, कैसे एक-दूसरे से संबंध बनाएं।
फर्क समझना ।
जब बुद्ध जीवित थे, सबकी नजरें बुद्ध पर लगी थीं, सब बुद्ध से जुड़े थे, तार बुद्ध से जुड़े थे, आपस में अगर पास भी थे तो भी इससे कुछ लेना-देना न था, कोई संग न था । संग बुद्ध के साथ था । आपस में साथ थे, क्योंकि सब एक दिशा में थे, इसलिए साथ हो लिए थे; और कोई साथ न था - संयोग था साथ ।
बुद्ध गए, शास्त्र बचा, अब संबंध बुद्ध से तो नहीं रह जाएगा, बुद्ध के शब्द से रहेगा। स्वभावतः, बुद्ध के शब्द को जो लोग ठीक से समझा सकेंगे, बुद्ध के शब्द की जो ठीक से व्याख्या कर सकेंगे - पंडित और पुरोहित - महत्वपूर्ण हो जाएंगे। व्याख्याकार महत्वपूर्ण हो जाएंगे । और व्याख्याकार एक नहीं होंगे, अनेक होंगे।
बुद्ध के मरते ही बुद्ध का संघ अनेक शाखाओं में टूट गया। टूट ही जाएगा। क्योंकि किसी ने कुछ व्याख्या की, किसी ने कुछ व्याख्या की। अब तो व्याख्या करने वाले स्वतंत्र हो गए, अब बुद्ध तो मौजूद न थे कि कहते कि नहीं, ऐसा मैंने नहीं कहा, कि मेरे कहने का ऐसा अर्थ है । बुद्ध के मौजूद रहते ये व्याख्याकार सिर भी उठा नहीं सकते थे। क्योंकि जब बुद्ध ही मौजूद हैं तो कौन उनकी सुनेगा कि बुद्ध ने क्या कहा ! बुद्ध के हटते ही बड़े दार्शनिक खड़े हो गए, पंडित खड़े हो गए, अलग-अलग व्याख्याएं, अलग-अलग संप्रदाय बन गए; बड़े भेद, बड़े विवाद । एक ही आदमी की वाणी के इतने भेद, इतने विवाद !
और निश्चित ही जिसको जिसकी बात ठीक लगी, वह उसके साथ हो लिया । अब बुद्ध से तो संबंध न रहा, बुद्ध के व्याख्याकारों से संबंध हो गया। बुद्ध तो
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