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एस धम्मो सनंतनो
स्कूल जाने की तैयारी करने लगे हैं, उनका लड़ाई-झगड़ा, उनका कोलाहल भी सुनायी पड़ता है; यह सब सुनायी पड़ता है, और तुम जागे भी नहीं हो, और तुम सोए भी नहीं हो। यह बीच की दशा है, जिसको योग में तंद्रा कहा है-जागरण और निद्रा के जो बीच में है दशा।
संघ का अर्थ होता है—बिलकुल सोए हुए आदमी जो गहरी अंधेरी रात में पड़े हैं, वे तो बुद्धों के पास आते नहीं; जो जाग गए हैं, उन्हें आने की जरूरत नहीं है...जो जाग ही गया, जो स्वयं ही बुद्ध हो गया, वह क्यों आए! किसलिए आए! कोई प्रयोजन नहीं। जो गहरा सोया है कि उसे होश ही नहीं है, वह कैसे आए! वह बुद्ध के पास से निकल जाता है और उसे रोमांच नहीं होता। वह बुद्ध की हवा से गुजर जाता है और उसे हवा का स्पर्श भी नहीं होता। वह गहरा सोया है। लेकिन इन दोनों के बीच की दशा वाले लोग भी हैं, जो जागे भी नहीं हैं कि बुद्ध हो गए हों और इतने सोए भी नहीं हैं कि बुद्ध होने की आकांक्षा न हो। उन तंद्रा से भरे लोगों, उन जलने की आकांक्षा से भरे बुझे दीयों से संघ बनता है।
लेकिन संघ का मौलिक आधार होता है, बुद्धपुरुष। केंद्र में बुद्ध हों, तो ही संघ बनता है।
दूसरा शब्द है, संगठन। जिस दिन बुद्ध विदा हो जाते हैं, जला दीया विलीन हो जाता है, निर्वाण को उपलब्ध हो जाता है, लेकिन उस जले दीए ने जो बातें कही थीं, जो व्यवस्था दी थी, जो अनुशासन दिया था; उस शास्ता ने जो कहा था, जो देशना दी थी, उसका शास्त्र रह जाता है; उस शास्त्र के आधार पर जो बनता है, वह संगठन। संघ की खूबी तो इसमें न रही। संघ के प्राण तो गए। संगठन मरा हुआ संघ है। कुछ-कुछ भनक रह गयी, कभी जाना था किसी जाग्रतपुरुष का सान्निध्य, कभी उसके पास उठे-बैठे थे, कभी उसकी सुगंध नासापुटों में भरी थी, कभी उसकी बांसुरी की मनमोहक तान हमारी तंद्रा में हमें सुनायी पड़ गयी थी, कभी किसी ने हमें प्रमाण दिया था अपने होने से कि ईश्वर है, कभी किसी की वाणी हमारे हृदय को गुदगुदा गयी थी, बंद कलियां खुली थीं; कभी कोई बरसा था सूरज की भांति हम पर और हम भी अंकुरित होने शुरू हुए थे, याद रह गयी, श्रुति रह गयी, स्मृति रह गयी, शास्त्र रह गया-शास्ता गया, शास्त्र रह गया। शास्ता और शास्त्र शब्द का संबंध समझ लेना, वही संबंध संघ और संगठन का है।
शास्ता जीवंत था। जो कहता था, वैसा था भी। फिर वाणी रह गयी, संग्रह रह गया, संहिता रह गयी। कहने वाला गया, अब तुम नए प्रश्न पूछोगे तो उत्तर न मिलेंगे; अब तो तुम पुराने प्रश्न, जिनके उत्तर दिए गए हैं, वे ही पूछो तो उत्तर मिल जाएंगे। अब नया संवेदन नहीं होता, अब नयी वाणी जाग्रत नहीं होती, अब नयी तरंग नहीं उठती, अब नयी बांसुरी नहीं बजती-रेकार्ड रह गया। शास्त्र यानी रेकार्ड। गायक तो जा चुका, रेकार्ड रह गया। ग्रामोफोन पर रखोगे, तो गायक जैसा
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