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________________ एस धम्मो सनंतनो लें। बीस साल पहले जिस धनी ने ये हीरे-जवाहरात हमें दिए थे, आज वह वापस मांगने आया था और आप कहते हैं कि दे देना था, सो मैंने दे दिए। यही भाव है। उसने दिया, उसने लिया। बीच में तुम मालिक मत बन जाना। मालकियत नहीं होनी चाहिए। मिल्कियत कितनी भी हो, मालकियत नहीं होनी चाहिए। बड़ा राज्य हो, मगर तुम उस राज्य में ऐसे ही जीना जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं है। तुम्हारा है भी नहीं कुछ। जिसका है उसका है। सबै भूमि गोपाल की। वह जाने। तुम्हें थोड़ी देर के लिए मुख्यार बना दिया, कि सम्हालो। तुमने थोड़ी देर मुख्यारी कर ली, मालिक मत बन जाओ। भूलो मत। जिसने दिया है, ले लेगा। जितनी देर दिया है, धन्यवाद! जब ले ले, तब भी धन्यवाद! जब दिया, तो इसका उपयोग कर लेना, जब ले ले, तो उस लेने की घड़ी का भी उपयोग कर लेना, यही संन्यासी की कला है, यही संन्यास की कला है। __ न तो छोड़ना है संन्यास, न पकड़ना है संन्यास। न तो भोग, न त्याग। संन्यास दोनों से मुक्ति है। संन्यास सभी कुछ प्रभु पर समर्पित कर देने का नाम है। मेरा कुछ भी नहीं, तो मैं छोडूंगा भी क्या? तो जो है उसका उपयोग कर लेना। और उपयोग में यह एक ध्यान रहे कि जिससे तुम नदी पार हो सको। तीसरा प्रश्नः आमतौर से आप भीड़ की आलोचना करते हैं। लेकिन भगवान बद्ध के संघ के समर्थन में आपने गुरजिएफ का हवाला देकर समूह-शक्ति को बहुत महत्व दिया। कृपाकर संघ-शक्ति, समूह और भीड़ के भेद को समझाइए। ऊपर से भेद दिखायी चाहे न पड़े, भीतर बड़ा भेद होता है। संघ का अर्थ होता है—जिस भीड़ के बीच में एक जाग्रतपुरुष खड़ा हो केंद्र पर। बुद्ध के बिना संघ नहीं होता। संघ के कारण संघ नहीं होता, बुद्ध के कारण संघ होता है। तो संघ शब्द का अर्थ समझ लेना। बहुत से बुझे दीए रखे हैं और एक दीया बीच में केंद्र पर जल रहा है, तो संघ। ये बहुत से बुझे दीए सरक रहे हैं धीरे-धीरे जले दीए के पास। ये जले दीए के पास आए ही इसलिए हैं कि जल जाएं, यही अभीप्सा इन्हें पास ले आयी है। ये बुझे दीए एक-दूसरे से नहीं जुड़े हैं, इनका कोई संबंध अपने पड़ोसी बुझे दीए से नहीं है। इनकी सबकी नजरें उस जले दीए पर लगी हैं, इन सबका संबंध उस जले दीए से है। मेरे पास इतने संन्यासी हैं। उनका कोई संबंध एक-दूसरे से नहीं है। अगर 288
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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