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________________ हम अनंत के यात्री हैं तो सुख मिलेगा। त्यागी कहता है, और कम हो तो सुख मिलेगा। लेकिन जो है उससे दोनों में से कोई भी सुखी नहीं है। जिन्होंने पूछा है उनका नाम है-भोगीलाल भाई। तुम छोड़-छाड़कर भग जाओ, तो मैं तुम्हें नाम दूंगा-योगीलाल भाई। और क्या करूंगा? मगर तुम तुम ही रहोगे। तुम्हारे भीतर की भाव की बात है। ___ तुम पकड़ते थे पहले, फिर तुम छोड़ने लगोगे; मगर तृप्त तुम तब भी न होओगे। संन्यस्त मैं उसे कहता हूं, जो है उसके साथ राजी है। जेहि विधि राखें राम, तेहि विधि रहिए। जो दे दिया है, जैसा है, राजी है। ले ले प्रभु, तो आज देने को राजी हैं। और दे दे, तो और भी लेने को राजी हैं, ना-नुच नहीं है। और बरसा दे छप्पर तोड़कर अशर्फियां, तो इनकार नहीं करेंगे, कि मैं भोगी नहीं हूं मैं त्यागी हं, यह क्या कर रहे हैं! क्या अन्याय हो रहा है! या सब ले जाए घर से लूटकर आज-लुटेरा तो है ही भगवान, इसीलिए तो हम उसको हरि कहते हैं; हरि का मतलब होता है चोर, चुरा ले जो, हर ले जो-चोर तो है ही, इधर देता है, उधर छीन भी लेता है। आज दिया, कल ले लेगा। और बीच में तुम बड़ी झंझटों में पड़ जाओगे। मुफ्त झंझटों में पड़ जाओगे। ___एक सूफी कहानी है। एक फकीर के दो बड़े प्यारे बेटे थे, जुड़वां बेटे थे। नगर की शान थे। सम्राट भी उन बेटों को देखकर ईर्ष्या से भर जाता था। सम्राट के बेटे भी वैसे सुंदर नहीं थे, वैसे प्रतिभाशाली नहीं थे। उसे गांव में रोशनी थी उन दो बेटों की। उनका व्यवहार भी इतना ही शालीन था, भद्र था। वह सूफी फकीर उन्हें इतना प्रेम करता था, उनके बिना कभी भोजन नहीं करता था, उनके बिना कभी रात सोने नहीं जाता था। एक दिन मस्जिद से लौटा प्रार्थना करके, घर आया, तो आते ही से पूछा, बेटे कहां हैं? रोज की उसकी आदत थी। उसकी पत्नी ने कहा, पहले भोजन कर लें, फिर बताऊं, थोड़ी लंबी कहानी है। पर उसने कहा, मेरे बेटे कहां हैं? उसने कहा कि आपसे एक बात कहूं? बीस साल पहले एक धनपति गांव का हीरे-जवाहरातों से भरी हुई एक थैली मेरे पास अमानत में रख गया था। आज वापस मांगने आया था। तो मैं उसे दे दूं कि न दूं? फकीर बोला, पागल, यह भी कोई पूछने की बात है? उसकी अमानत, उसने दी थी, बीस साल वह हमारे पास रही, इसका मतलब यह तो नहीं कि हम उसके मालिक हो गए। तूने दे क्यों नहीं दी? अब मेरे से पूछने के लिए रुकी है? यह भी कोई बात हुई! उसी वक्त दे देना था। झंझट टलती। तो उसने कहा, फिर आप आएं, फिर कोई अड़चन नहीं है। __वह बगल के कमरे में ले गयी, वे दोनों बेटे नदी में डूबकर मर गए थे। नदी में तैरने गए थे, डूब गए। उनकी लाशें पड़ी थीं, उसने चादर उढ़ा दी थी, फूल डाल दिए थे लाशों पर। उसने कहा, मैं इसीलिए चाहती थी कि आप पहले भोजन कर 287
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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