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एस धम्मो सनंतनो
मेरे पास, वह कहीं खो न जाए। तब भागते हुए जब उसने लंगोटी उठायी, तब उसे याद पड़ी बात। ___ वस्तु के परिग्रह का सवाल नहीं है, भाव का सवाल है। मात्रा की मत पूछो, भाव की पूछो। समझ की पूछो।
जीसस के जीवन में उल्लेख है और तब ईसा जेरोकम के पास आए। नगरसेठ जेरोकम ने मार्ग में अगणित स्वर्णमुद्राएं बिखराकर कहा-प्रभु, मेरी यह तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिए। ईसा ने उस धनराशि के बीच पड़े एक तांबे के सिक्के को उठाकर कहा-यह सबको तू ले जा, जितना मेरे सामर्थ्य में था मैंने ले लिया। इस तांबे के सिक्के का बोझ मुझे अधिक नहीं ढोना पड़ेगा। मैं इसे मल्लाह को दे दूंगा, वह मुझे नदी के पार उतार देगा। ___ उतना, मात्रा की बात पूछते हो तो उतना, जितने से नदी पार उतर जाओ। यह कहानी बड़ी मीठी है। जेरोकम ने स्वर्णमुद्राएं बिछा दीं रास्तों पर और ईसा से कहा कि आप स्वीकार करें। वह उस समय का बड़े से बड़ा धनी आदमी था जेरोकम।
और ईसा ने यहां-वहां नजर डाली-भेंट लाया है तो एकदम इनकार भी न कर सके-एक तांबे का सिक्का उठा लिया और कहा, इतना मेरे लिए पर्याप्त है। सोचा होगा जेरोकम ने, एक तांबे के सिक्के से करोगे क्या? एक तांबे के सिक्के से होता क्या है ? पूछा होगा, क्या करिएगा? तो जीसस ने कहा कि नदी पर मल्लाह मिलेगा, उसको मैं यह दे दूंगा, वह मुझे नदी के पार उतार देगा। नदी पार उतरने के लिए इतना काफी है। इसका ज्यादा देर तक बोझ मुझे ढोना न पड़ेगा, बस नदी तक। फिर मल्लाह को दे दूंगा, उस पार हो जाऊंगा।
यह बड़ी प्रतीकात्मक कहानी है। ऐसी घटी हो, न घटी हो, यह सवाल नहीं है। बस इतना ही परिग्रह जितने से इस जीवन की नदी को पार हो जाओ। मगर ध्यान रखना कि असली सवाल भाव का है। तांबे के एक सिक्के को भी तुम इतने जोर से पकड़ ले सकते हो कि वही तुम्हारी फांसी बन जाए। तुमने जितने जोर से पकड़ा, उसी में तुम्हारी फांसी है। ढीला पकड़ना। और जैसे ही छोड़ने का मौका आ जाए, एक क्षण भी झिझकना मत। __और यह भी तुमसे नहीं कह रहा हूं कि आज छोड़कर भाग जाओ। कहां भागकर जाओगे? कहीं तो छप्पर बनाओगे? तो तुम्हारा छप्पर कुछ बुरा नहीं है। किन्हीं के साथ तो रहोगे? तो तुम्हारे पत्नी-बच्चे बुरे नहीं हैं। कहां जाओगे भागकर! सब जगह संसार है। छोड़ने की दौड़ में मत पड़ना।
दो तरह की दौड़ें हैं दुनिया में और दो तरह के पागल हैं दुनिया में। एक, और ज्यादा हो जाए इसकी दौड़ में लगे हैं। और एक, और कम हो जाए इसकी दौड़ में लगे हैं। एक भोगी हैं-कितना बढ़ जाए। एक योगी हैं, त्यागी हैं—इतना और घट जाए! मगर दोनों अतृप्त हैं। जो है, उससे अतृप्त हैं। भोगी कहता है, और ज्यादा हो
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