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एस धम्मो सनंतनो
हैं वह गलत होगा ही। उनके दीए जले नहीं हैं, अंधेरे में टटोलते हैं, टकराते हैं, संघर्ष करते हैं।
'दान्त-प्रशिक्षित-हाथी को युद्ध में ले जाते हैं, दान्त पर राजा चढ़ता है। मनुष्यों में भी दान्त श्रेष्ठ है जो दूसरों के कटु वाक्यों को सहन करता है।'
राजा हर हाथी पर नहीं चढ़ता। राजा दान्त हाथी पर चढ़ता है। दान्त का मतलब–जो ठीक से प्रशिक्षित है। कितने ही बाण गिरें, तो भी हाथी टस से मस न होगा, राजा उस पर सवारी करता है। भगवान भी उसी पर सवारी करते हैं, जो दान्त है। उस पर जीवन का परम शिखर रखा जाता है।
_ 'दान्त–प्रशिक्षित-हाथी को युद्ध में ले जाते हैं, दान्त पर राजा चढ़ता है। मनुष्यों में भी दान्त श्रेष्ठ है...।' ___ जिसने अपने को प्रशिक्षित कर लिया है। और ये सारे लोग अवसर जुटा रहे हैं तुम्हें प्रशिक्षित करने का, ये फेंक रहे हैं बाण तुम्हारे ऊपर, तुम अकंप खड़े रहो इनकी गालियों की वर्षा के बीच; हिलो नहीं; डुलो नहीं; जीवन रहे कि जाए, लेकिन कंपो नहीं; तो राजा तुम पर सवार होगा। राजा यानी चेतना की अंतिम दशा। समाधि तुम पर उतरेगी, भगवान तुम पर विराजेगा, तुम मंदिर बन जाओगे। तुम सिंहासन बनोगे प्रभु के। दान्त पर राजा चढ़ता है, ऐसे ही तुम पर भी जीवन का अंतिम शिखर रखा जाएगा।
'इन यानों में से कोई निर्वाण को नहीं जा सकता।'
यह जो धर्मगुरु और पंडित और जमानेभर के पुरोहित कह रहे हैं, इन मार्गों से कोई कभी निर्वाण को नहीं जा सकता।।
'अपने को जिसने दमन कर लिया है, वही सुदान्त वहां पहुंच सकता है।'
सिर्फ एक ही व्यक्ति वहां पहुंचता है, एक ही भांति के व्यक्ति वहां पहुंचते हैं, जिन्होंने अपनी सहनशीलता अपरिसीम कर ली है। जो ऐसे दान्त हो गए हैं कि मौत भी आए तो उन्हें कंपाती नहीं। जो कंपते ही नहीं। ऐसी निष्कंप दशा को कृष्ण ने कहा—स्थितिप्रज्ञ। जिसकी प्रज्ञा स्थिर हो गयी है। ____'यह चित्त पहले यथेच्छ, यथाकाम और यथासुख आचरण करता रहा। जिस तरह भड़के हुए हाथी को महावत काबू में लाता है, उसी तरह मैं अपने चित्त को आज बस में लाऊंगा।'
जब भी कोई गाली दे, तुम एक ही बात खयाल करना; जब भी कोई अपमान करे, एक ही स्मरण करना, एक ही दीया जलाना भीतर
'यह चित्त पहले यथेच्छ, यथाकाम, यथासुख आचरण करता रहा। जिस तरह भड़के हुए हाथी को महावत काबू में लाता है, उसी तरह मैं अपने चित्त को आज बस में लाऊंगा।' __ हर अपमान को चित्त को बस में लाने का कारण बनाओ। हर गाली को उपयोग
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