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________________ ध्यान का दीप, करुणा का प्रकाश भुलावे में रहती है। जनता देखती है कि धर्मगुरु सच्चा होना चाहिए, क्योंकि राजा जिसके पैर छुए ! और जब धर्मगुरु कहता है कि राजा भगवान का अवतार है तो ठीक ही कहता होगा। जब धर्मगुरु कहता है तो ठीक ही कहता होगा। यह षड्यंत्र है। यह पुराना षड्यंत्र है। यह पृथ्वी पर सदा से चलता रहा है। धर्मगुरु सहायता देता रहा है राजनेताओं को और राजनेता सहायता देते रहे धर्मगुरुओं को। दोनों के बीच में आदमी कसा रहा है। दोनों ने आदमी को चूसा है । बुद्ध दोनों के विपरीत एक बगावत खड़ी कर रहे हैं। तो कहते हैं, हर गांव में यही होगा। हर गांव में यही होना है। गांव-गांव में यही होना है। क्योंकि हर गांव की कहानी यही है, व्यवस्था यही है । हम जहां जाएंगे, वहीं अंधेरा हमसे नाराज होगा। हम जहां जाएंगे, वहीं लोग हमसे रुष्ट होंगे। हम जहां जाएंगे, वहीं हमें गालियां मिलेंगी, अपमान मिलेंगे। तुम इनके लिए तैयार रहो । यही हमारा सम्मान है । सत्य की यही कसौटी है । आनंद को ये बातें कहकर बुद्ध ने ये सूत्र कहे थे, ये गाथाएं अहं नागोव संगामे चापतो पतितं सरं । अतिवाक्यं तितिक्खिस्सं दुस्सीलो हि बहुज्जनो ।। दंतं नयंति समितिं दंतं राजाभिरूहति । दंतो सेट्ठो मनुस्सेसु योति वाक्यं तितिक्खति । । नहि एतेहि यानेहि गच्छेय अगतं दिसं । यथात्तना सुदंतेन दंतो दंतेन गच्छति।। इदं पुरे चित्तमचारि चारिकं येनिच्छकं यत्थ कामं यथासुखं । तदज्जहं निग्गहेस्सामि योनिसो हथिप्पभिन्नं विय अंकुसग्गहो ।। 'जैसे युद्ध में हाथी गिरे हुए बाण को सहन करता है, वैसे ही मैं कटु वाक्य को सहन करूंगा, क्योंकि बहुजन तो दुःशील ही हैं।' बहुजन तो दुष्ट प्रकृति के हैं ही। इसे मानकर चलो। सभी जगह यह बहुजन मिलेंगे। फिर जैसे युद्ध में हाथी गिरे हुए बाण को सहन करता है, चारों दिशाओं से आते बाणों को सहन करो । यह स्वीकार करके कि दुनिया में अधिक लोग दुष्ट हैं, बुरे हैं। उनका कोई कसूर भी नहीं, वे बुरे हैं, इसलिए बुरा करते हैं । वे दुष्ट हैं, इसलिए दुष्टता करते हैं। यह उनका स्वभाव है । बिच्छू काटता है, सांप फुफकारता है । बिच्छू काटता है तो जहर चढ़ जाता है। अब इसमें बिच्छू का कोई कसूर थोड़े ही है। ऐसा बिच्छू का स्वभाव है। अधिक लोग मूर्च्छित हैं, मूर्च्छा में जो भी करते 279
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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