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________________ एस धम्मो सनंतनो क्यों नाराज हुए जा रहे हो? और वह जो कह रहा है, वह अपनी दृष्टि निवेदन कर रहा है। गधों को गधे के अतिरिक्त कुछ और दिखायी भी नहीं पड़ता। उसे हो सकता है तुममें गधा दिखायी पड़ रहा हो। उसको गधे से ज्यादा कुछ दिखायी ही न पड़ता हो दुनिया में। उसकी अड़चन है, उसकी समस्या है। तुम इसमें परेशान क्यों हो? बुद्ध कहते थे, तुम लो मत, गाली को पकड़ो मत; गाली आए, आने दो, जाए, जाने दो, तुम बीच में अटकाओ मत। तुम न लोगे, तो तुम्हें गाली मिलेगी नहीं। तुम शांत रहो। आनंद ने कहा, यह तो बड़ी मुश्किल है! तो हम क्या करें? बुद्ध ने कहा, क्या करें? संघर्ष हमारा जीवन है। और कहीं और जाने से कुछ भी हल न होगा। फिर भी आनंद ने कहा, तो हम करें क्या? आनंद, हम सहें, बुद्ध ने कहा। हम शांति से सहें। सत्य के लिए यह कीमत चुकानी ही पड़ती है। जैसे संग्राम भूमि में गया हाथी चारों दिशाओं से आए हुए बाणों को सहता है, ऐसे ही अपमानों और गालियों को सह लेना हमारा कर्तव्य है। इसमें ही तुम्हारा कल्याण है, इसे अवसर समझो और निराश न होओ। उन गालियां देने वालों का बड़ा उपकार है। यह बुद्ध की सदा की दृष्टि है। यह बुद्धों की सदा की दृष्टि है। इसमें भी हमारा उपकार है। न वे गाली देते, न हमें शांति रखने का ऐसा अवसर मिलता। न वे हमारा अपमान करते, न हमारे पास कसौटी होती कि हम अपमान को अभी जीत सके या नहीं? वे खड़ा करें तूफान हमारे चारों तरफ और हम निर्विघ्न, निश्चित और अकंप बने रहें। तो उनका उपकार मानो। वे परीक्षा के मौके दे रहे हैं। इन्हीं परीक्षाओं से गुजरकर निखरोगे तुम। इन्हीं परीक्षाओं से गुजरकर मजबूत होगे। अगर वे ये मौके न दें, तो तुम्हें कभी मौका ही नहीं मिलेगा कि तुम कैसे जानो कि तुम्हारे भीतर कुछ सचमुच ही घटा है, या नहीं घटा है! उनकी कठिनाइयों को कठिनाइयां मत समझो, परीक्षाएं समझो। और तब उनका भी उपकार है। और जाने से कुछ भी न होगा, बुद्ध ने कहा। इस गांव को छोड़ोगे, दूसरे गांव में यही होगा। दूसरा गांव छोड़ोगे, तीसरे गांव में यही होगा। हर जगह यही होगा। हर जगह धर्मगुरु हैं, हर जगह गुंडे हैं। और हर जगह धर्मगुरुओं और गुंडों के बीच सांठ-गांठ है। वह पुरानी सांठ-गांठ है। राजनीतिज्ञ और धर्मगुरु के बीच बड़ी पुरानी सांठ-गांठ है। राजनीतिज्ञ का अर्थ होता है-स्वीकृत गुंडे, सम्मानित गुंडे, जो बड़ी व्यवस्था और कानून के ढंग से अपनी गुंडागिरी चलाते हैं। इनके साथ भी पीछे अस्वीकृत गुंडों का हाथ होता है। वे भी पीछे खड़े हैं। . ___ हर कोई जानता है कि तुम्हारा राजनेता जिनके बल पर खड़ा होता है, वह गुंडों की एक कतार है। तुम्हारा राजनेता कुशल डाकू है। और डाकू उसके सहारे के लिए खड़े हैं। और धर्मगुरु, इन दोनों की सांठ-गांठ है। धर्मगुरु सदा से कहता रहा है कि राजा भगवान का अवतार है। और राजा आकर धर्मगुरु के चरण छूता है। जनता खूब 278
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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