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________________ ध्यान का दीप, करुणा का प्रकाश हैं। हम चोट करने से रुक नहीं सकते। क्योंकि अगर हम चोट न करें तो सत्य की कोई हवा नहीं फैलायी जा सकती। और जिन्होंने असत्य को पकड़ रखा है, वे तुम सोचते हो चुप ही बैठे रहेंगे। उनके स्वार्थ मरते, उनके निहित स्वार्थ जलते, टूटते, फूटते, वे बदला लेंगे। ___ कोई मठाधीश है, कोई महामंडलेश्वर है, कोई शंकराचार्य है, कोई कुछ है, कोई कुछ है, उनके सबके स्वार्थ हैं। यह कोई सत्य-असत्य की ही थोड़ी सीधी लड़ाई है, असत्य के साथ बहुत स्वार्थ जुड़ा है। अगर हम सही हैं, तो उनके पास कल कोई भी न जाएगा। और वे उन्हीं पर जीते हैं। आने वालों पर जीते हैं। तो उनकी लाख चेष्टा तो होगी ही कि वे हमें गलत सिद्ध करें। फिर उनके पास कोई सीधा उपाय भी नहीं है। क्योंकि वे यह तो सिद्ध नहीं कर सकते कि जो वे कहते हैं, सत्य है। सत्य का तो उन्हें कुछ पता नहीं है। इसलिए वे उलटा उपाय करते हैं— गाली-गलौज पर उतर आते हैं, अपमान-आक्रोशन पर उतर आते हैं; यह उनकी कमजोरी का लक्षण है। गाली-गलौज की कोई जरूरत नहीं है। हम अपना सत्य निवेदन करते हैं, वे अपना सत्य निवेदन कर दें, लोग निर्णय कर लेंगे. लोग सोच लेंगे। हमने अपनी तस्वीर रख दी है, वे अपनी तस्वीर रख दें। मगर वे अपनी तस्वीर रखते नहीं, उनके पास कोई तस्वीर नहीं है। उनका एक ही काम है कि हमारी तस्वीर पर कीचड़ फेंकें। यही एक उनके पास उपाय है। तू उनकी तकलीफ भी समझ, आनंद, बुद्ध ने कहा। उनकी अड़चन देख। अपने ही दुख में मत उलझ। हमारा दुख क्या खाक दुख है। गाली दे दी, दे दी। गाली लगती कहां, लगती किस को! तू मत पकड़ तो लगेगी नहीं। बुद्ध यह हमेशा कहते थे कि गाली तब तक नहीं लगती जब तक तुम लो न। तुम लेते हो, तो लगती है। किसी ने कहा-गधा। तुमने ले ली, तुम खड़े हो गए कि तुमने मुझे गधा क्यों कहा? तुम लो ही मत। आया हवा का झोंका, चला गया हवा का झोंका। झगड़ा क्या है! उसने कहा, उसकी मौज! ___मैं अभी एक, कल ही एक छोटी सी कहानी पढ़ रहा था। अमरीका में प्रेसीडेंट का चुनाव पीछे हुआ, कार्टर और फोर्ड के बीच। एक होटल में-कहीं टेक्सास में कुछ लोग बैठे गपशप कर रहे थे और एक आदमी ने कहा, यह फोर्ड तो बिलकुल गधा है। फिर उसे लगा कि गधा जरा जरूरत से ज्यादा हो गया, तो उसने कहा, गधा नहीं तो कम से कम घोड़ा तो है ही। एक आदमी कोई साढ़े छह फीट लंबा एकदम उठकर खड़ा हो गया और दो-तीन चूंसे उस आदमी को जड़ दिए। वह आदमी बहुत घबड़ाया, उसने कहा कि भई, आप क्या फोर्ड के बड़े प्रेमी हैं? उसने कहा कि नहीं, हम घोड़ों का अपमान नहीं सह सकते। __ अब तुमसे कोई गधा कह रहा है, अब कौन जाने गधे का अपमान हो रहा है कि तुम्हारा हो रहा है। फिर गधे भी इतने गधे नहीं हैं कि गधे कहो तो नाराज हों। तुम 277
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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