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________________ एस धम्मो सनंतनो ये तो जो लिखी जा सकें। न लिखी जा सकें तुम समझ लेना। वे भिक्षुणिओं को भी अपमानजनक शब्द बोलते थे। वे भगवान पर तरह-तरह की कीचड़ उछालते थे। उन्होंने बड़ी अनूठी-अनूठी कहानियां गढ़ रखी थीं। और उन कहानियों में, उस कीचड़ में बहुत से धर्मगुरुओं का हाथ था। __ जब बहुत लोग बात कहते हों तो साधारणजन मान लेते हैं कि ठीक ही कहते होंगे। आखिर इतने लोगों को कहने की जरूरत भी क्या है? ठीक ही कहते होंगे। आनंद स्थविर ने भगवान के पास जाकर वंदना करके कहा-भंते, ये नगरवासी हम लोगों का आक्रोशन करते हैं, गालियां देते हैं, इससे अच्छा है कि हम किसी दूसरी जगह चलें। यह नगर हमारे लिए नहीं। भिक्षु बहुत परेशान हैं, भिक्षुणियां बहुत परेशान हैं। झुंड के झुंड लोग पीछे चलते हैं और अपमानजनक शब्द चीखते-चिल्लाते हैं। एक तमाशा हो गया, यहां तो जीना कठिन हो गया है। फिर आपकी आज्ञा है कि हम इसका कोई उत्तर न दें, धैर्य और शांति रखें, इससे बात और असह्य हुई जाती है। हमें भी उत्तर देने का मौका हो तो हम भी जूझ लें और निपट लें। क्षत्रिय था आनंद, पुराना लड़ाका था। यह भी एक झंझट लगा दी है कि कुछ कहना मत, कुछ बोलना मत, उत्तर देना मत। तो हम बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं, फांसी लग गयी है। वे फांसी लगा रहे हैं और आप फांसी लगाए हुए हैं। आप कहते हैं, बोलो मत, चुपचाप रहो, शांत रहो, धैर्य रखो। इससे बात बहुत असह्य हो गयी है। और चुप्पी का अर्थ लोग क्या समझते हैं, आपको पता है, भंते? वे समझते हैं कि हमारे पास जवाब नहीं है, इसलिए चुप हैं। वे सोचते हैं कि है ही नहीं जवाब, नहीं तो जवाब देते न! बातें सच हैं जो आपके खिलाफ प्रचारित की जा रही हैं, इसीलिए तो बुद्ध चुप हैं और बुद्ध के भिक्षु चुप हैं। देखो, कैसे चुपचाप पूंछ दबाकर निकल जाते हैं! शांति का मतलब वे लोग ले रहे हैं कि पूंछ दबाकर निकल जाते हैं। कुछ बोलते नहीं। सत्य होता इनके पास, तो मैदान में आते, जवाब देते। भगवान हंसे और बोले-आनंद, फिर कहां चलें? आनंद ने कहा- भंते, इसमें क्या अड़चन है, दूसरे नगर को चलें। और वहां के मनुष्यों द्वारा आक्रोशन करने पर कहां जाएंगे? भगवान ने कहा। भंते, वहां से भी दूसरे नगर को चले चलेंगे, नगरों की कोई कमी है, आनंद बोला। पागल आनंद, लेकिन ऐसा सभी जगह हो सकता है। सभी जगह होगा। अंधेरा सभी जगह हमसे नाराज होगा। बीमारियां सभी जगह हमसे रुष्ट होंगी। धर्मगुरु सभी जगह ऐसे ही हैं। और उनके स्वार्थ पर चोट पड़ती है, आनंद, तो वे जैसा यहां कर रहे हैं वैसा वहां भी करेंगे। और हम उनके स्वार्थ पर चोट करना बंद भी तो नहीं कर सकते, आनंद। कसूर तो हमारा ही है, भगवान ने कहा। हम उनके स्वार्थ पर चोट करते हैं, वे प्रतिशोध करते 276
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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