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________________ ध्यान का दीप, करुणा का प्रकाश कर लो। हर पत्थर को सीढ़ी बनाओ। इस जीवन में जो भी तुम्हें मिलता है, उस सभी का सम्यक उपयोग हो सकता है। गालियां भी मंदिर की सीढ़ियां बन सकती हैं। और ऐसे तो प्रार्थनाएं भी मंदिर की सीढ़ियां नहीं बन पातीं। सब तुम पर निर्भर है। तुम्हारे पास एक सृजनात्मक बुद्धि होनी चाहिए। बुद्ध का सारा जोर, समस्त बुद्धों का सदा से जोर इस बात पर रहा है जो जीवन दे, उसका सम्यक उपयोग कर लो। जो भी जीवन दे, उसमें यह फिकर मत करो-अच्छा था, बुरा था; देना था कि नहीं देना था। जो दे दे। गाली आए हाथ में तो गाली का उपयोग करने की सोचो कि कैसा उसका उपयोग करूं कि मेरे निर्वाण के मार्ग पर सहयोगी हो जाए? कैसे मैं इसे अपने भगवान के मंदिर की सीढ़ी में रूपांतरित कर लूं? और हर चीज रूपांतरित हो जाती है। आज इतना ही। 281
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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