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ध्यान का दीप, करुणा का प्रकाश
न पति को तोड़ता पत्नी से, न पत्नी बच्चे से टूट रही है। मगर बस, पति को भारी अड़चन हो गयी है! अड़चन क्या है?
अड़चन यही है कि अब तक वे पत्नी के परमात्मा बने बैठे थे, अब वह बात न रही। अड़चन यह है कि उनका प्रभुत्व एकदम से क्षीण हो गया। अड़चन यह है कि आज अगर उनकी पत्नी से मैं कुछ कहूं तो वह मेरी मानेगी, उनकी नहीं मानेगी, यह अड़चन-अभी मैंने कुछ कहा भी नहीं है, मैं कभी कहूंगा भी नहीं-बस लेकिन अड़चन, संभावना की अड़चन। यह बात पीड़ा दे रही है। पुरुष के अहंकार को बड़ा कष्ट होता है।
वह मुझे पत्र में लिखते हैं कि मुझमें क्या कमी है, जो मेरी पत्नी आपके पास जाती है? यह तो तुम अपनी पत्नी से पूछो। प्रोफेसर हैं किसी विश्वविद्यालय में, लिखते हैं कि मैं दर्शनशास्त्र का प्रोफेसर हूं। हर बात जो प्रश्न उठता हो, हर एक का उत्तर मेरे पास है, विद्यार्थियों को पढ़ाता हूं, मेरी पत्नी को क्या पूछना है जो आपके पास जाए? मैं सब बात का उत्तर देने को तैयार हूं।
आप सब बात का उत्तर देने को तैयार हैं, लेकिन अगर पत्नी आपके उत्तरों में आस्था रखने को तैयार नहीं, तो मैं क्या करूं? मैंने पत्नी को बुलाकर समझा भी दिया कि देवी, तू जा! मगर जितना मैं उसे समझाता हूं कि तू जा, उतना वह जाने को राजी नहीं है।
ऐसा निरंतर होता रहा है। ऐसे होने का कारण है। कोई किसी को यहां सम्मोहित नहीं कर रहा है। लेकिन सत्य सम्मोहक है, यह बात सच है। कोई सम्मोहन नहीं कर रहा है, लेकिन सत्य सम्मोहक है। सत्य की एक किरण भी तुम्हारे खयाल में आ जाए, तो बस, तुम्हारी भांवर पड़नी शुरू हो जाती है। अनजाने यह हो जाता है। गए थे वे मां-बाप बड़ी नाराजगी में, लेकिन बुद्ध के पास गए तो उनके जीवन में भी एक ज्योति जली। जो-जो उनके पंडित-पुजारियों ने अब तक कहा था बुद्ध के संबंध में, वैसा तो कुछ भी न था। पंडित-पुजारी तो ऐसा बता रहे थे कि इससे बड़ा शैतान कोई नहीं है। यह आदमी भ्रष्ट कर रहा है।
- आखिर कितने ही अंधे रहे हों और दर्पण पर कितनी ही धूल जमी हो, दर्पण फिर भी तो कहीं कोने-कांतर से झलक दे ही देगा। थोड़ा-बहुत तो दर्पण बचा होगा। देखा होगा इस आदमी को, यह आदमी तो ऐसा कुछ शैतान नहीं मालूम होता; देखे होंगे भिक्षु, ये भिक्षु कुछ ऐसे तो पाशविक नहीं मालूम होते। जैसा पंडित-पुजारी कह रहे थे, ऐसा कुछ धूर्त नहीं मालूम होता। इसकी बातें सुनी होंगी, इनमें कुछ धूर्तता नहीं मालूम होती, सीधी-साफ बातें हैं, दो-टूक बातें हैं। शायद दो-टूक हैं इसीलिए अखरती हैं पंडित-पुरोहितों को। तुलना उठी होगी। __ उनके जीवन में भी एक ज्योति जली। बुद्ध के पास जाना और बुद्ध के बिना हुए लौट आना संभव भी नहीं है। इन्हीं लोगों से बुद्ध ने ये गाथाएं कही थीं
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