SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो अवज्जे वज्जमतिनो वज्जे च वज्जदस्सिनो। मिच्छादिविसमादाना सत्ता गच्छंति दुग्गतिं ।। वज्जञ्च वज्जतो जत्वा अवज्जञ्च अवज्जतो। सम्मादिट्ठिसमादाना सत्ता गच्छंति सुग्गति।। 'जो अदोष में दोष-बुद्धि रखने वाले और दोष में अदोष-दृष्टि रखने वाले हैं, वे लोग मिथ्या-दृष्टि को ग्रहण करने के कारण दुर्गति को प्राप्त होते हैं।' _ 'दोष को दोष, अदोष को अदोष जानकर लोग सम्यक-दृष्टि को धारण करके सुगति को प्राप्त होते हैं।' दो छोटी सी बातें, दो छोटे से सूत्र उन्होंने उन लोगों को दिए। उनको कहा कि जो जैसा है उसे वैसा ही देखने से सम्यक-दृष्टि पैदा होती है। और जो जैसा नहीं है, उससे अन्यथा देखने से मिथ्या-दृष्टि पैदा होती है। जो जैसा है, उसे बिना पक्षपात के वैसा ही देखना चाहिए; तो तुम सुगति में जाओगे। जो जैसा नहीं है वैसा उसे देखोगे, जो जैसा है वैसा उसे नहीं देखोगे, तो किसी और की हानि.नहीं है, तुम्ही धीरे-धीरे विकृति में घिरते जाओगे। 'जो अदोष में दोष-बद्धि रखने वाले हैं।' और बुद्ध ने कहा कि मैं यहां बैठा हूं, मुझे देखो, पक्षपात लेकर मत आओ; दूसरे क्या कहते हैं, इसे बाहर रख आओ; मेरे पास आओ, मुझे देखो। मुझे देखो निष्पक्ष भाव से, ताकि तुम निर्णय कर सको कि क्या ठीक है और क्या गलत है। फिर तुम्ही निर्णायक बनो। मगर तुम पहले ही तय कर लो, तुम पहले ही मान लो, आने के पहले ही निर्णय कर लो, आओ ही न, अपने निर्णय को ही मानकर बैठ जाओ आंख बंद करके, फिर तुम्हारी मर्जी! लेकिन तब ध्यान रखना, दुर्गति में पड़ोगे। दुर्गति में पड़ ही गए, क्योंकि तुम अंधे हो गए, जगह-जगह टकराओगे और जीवन-सत्य तुम्हें कभी भी न मिलेगा। और जीवन-सत्य ही मिल जाए, तो सुगति, तो स्वर्ग। और जीवन-सत्य ही खो जाए, तो दुर्गति। ___ दोष को दोष देखो, अदोष को अदोष जानो, तो सम्यक-दृष्टि उत्पन्न होती है। ठीक-ठीक दृष्टि, ठीक-ठीक आंखें। और बुद्ध का सारा जोर इस बात पर है कि तुम्हारी आंख ठीक हो–बेपर्दा हो, नग्न हो, पक्षपात मुक्त हो, खाली हो, ताकि खाली आंख से तुम देख सको, जो जैसा है वैसा ही देख सको। अब जो लोग बुद्ध के पास आकर भी चूक जाते होंगे देखने से, एक ही अर्थ है इस बात का कि उनकी आंखें इतनी भरी होंगी, इतनी भरी होंगी कि वे कुछ का कुछ देख लेते होंगे। तुमने अक्सर पाया होगा, अगर तुम्हारी कोई दृष्टि हो तो तुम कुछ का कुछ देख लेते हो। सूफी कहानी है 274
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy