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एस धम्मो सनंतनो
राजी हो गए थे कि न जाएंगे। जिसको देखा न था, उसके पास न जाने की कसम खाने में अड़चन न थी । अब देख लिया था, अब देर हो गयी थी ।
फिर तो वे मां-बाप इतने पगला गए, इतने विक्षिप्त हो गए कि अंततः उन्होंने यही तय कर लिया कि ऐसे बच्चों को घर में न रखेंगे। इनको बुद्ध को ही दे देंगे। सम्हालो इन्हें तुम ही, ये हमारे नहीं रहे, इनसे हम संबंध विच्छिन्न कर लेते हैं। ऐसा सोचकर इन बच्चों को त्याग देने के लिए ही वे बुद्ध के पास गए, पर यह जाना उनके जीवन में ज्योति जला गया।
कभी-कभी ऐसा हो जाता है, तुम गलत कारण से बुद्धों के पास जाते हो, फिर भी ठीक घट जाता है। तुम ठीक कारणों से भी पुरोहितों के पास जाओ, तो भी ठीक नहीं घटता। और तुम गलत कारणों से भी बुद्धों के पास चले जाओ तो कभी-कभी ठीक घट जाता है। कभी अनायास झरोखा खुल जाता है।
आखिर इन मां-बाप को भी इतना तो विचार उठा ही होगा कि हमने पैदा किया इन बच्चों को, हमने बड़ा किया इन बच्चों को, हमने पाला-पोसा, हमारी नहीं सुनते हैं! आखिर इस बुद्ध ने क्या दे दिया होगा ! आखिर इस आदमी के पास क्या होगा ! हमारे पंडित की नहीं सुनते हैं जो कि शास्त्रों का ज्ञाता है, वेद जिसे कंठस्थ हैं। हमारे धर्मगुरु की नहीं सुनते हैं जो कि इतना अच्छा वक्ता है, इतना अच्छा समझाता है, में जिसकी सलाह, इससे और अच्छी सलाह क्या हो सकती है ! आखिर इस बुद्ध ऐसा क्या होगा ! और फिर हमने इन्हें मारा, पीटा, लोभ दिया, कुछ भी असर नहीं होता । हो न हो कुछ बात हो भी सकती है। उनके भीतर भी एक सुगबुगी तो उठी होगी। असंभव है कि न उठी हो। एक विचार तो मन में कौंधा होगा बिजली की तरह कि हो न हो हम ही गलत हों! कौन जाने ! फिर एकाध बच्चे की बात न थी, बहुत बच्चों की बात थी, ये कई बच्चे पड़ोस के खेलते चले गए थे। फिर ये सब टिके थे। ये सब कष्ट सहने को तैयार थे, लेकिन बुद्ध के पास नहीं जाएंगे, ऐसी कसम खाने को अब तैयार न थे ।
गए तो होंगे क्रोध में ही, गए तो होंगे नाराज, गए तो थे इन बच्चों को छोड़ आने, लेकिन भीतर एक बात तो जग ही गयी थी कि क्या होगा! पता नहीं, इस आदमी में कुछ हो !
इधर रोज ऐसा घटता है। लोग रोकते हैं किसी को आने से कि वहां मत जाना, सम्मोहित हो जाओगे। वहां सम्मोहन का प्रयोग चल रहा है । एक पति का मुझे पत्र मिला- तीन-चार पत्र मिल चुके हैं महीनेभर के भीतर-बड़े पत्र लिखते हैं कि मेरी पत्नी ने आपसे संन्यास ले लिया, मैं बरबाद हो गया । मेरा सब नष्ट-भ्रष्ट हो गया । आपने सम्मोहित कर लिया। आप कृपा करके मेरी पत्नी पर से सम्मोहन हटा लें। आप उसे मुक्त कर दें।
अब मेरा संन्यास न तो किसी को तोड़ता घर से; न पत्नी को तोड़ता पति से,
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