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________________ ध्यान का दीप, करुणा का प्रकाश मगर इस तरह के पाठ तो अंततः मनुष्य के मन में संदेह को गहन करते जाते हैं। और जिसका अपने मां-बाप पर संदेह पैदा हो गया, उसकी फिर किसी पर श्रद्धा नहीं रह जाती। जो निकटतम थे, जो अपने इतने करीब थे, जिनसे हम पैदा हुए थे, वे भी धोखेबाज सिद्ध हुए। वे भी कुछ ऐसी बातें कह गए जो सच न थीं! वे भी ऐसी बातें कर रहे थे जो मिथ्या थीं! जिनको हम आज नहीं कल अपने जीवन में जान लेंगे, अनुभव कर लेंगे कि बात बिलकुल झूठ थी। फिर भी कही गयी थी! मां-बाप ने भी झूठ कहा था! अगर मां-बाप सिर्फ उतना ही कहें जितना जानते हैं, और एक शब्द ज्यादा न कहें, और बच्चों को मुक्त रखें, और उनकी सरल श्रद्धा नष्ट न करें, तो यह सारी दुनिया धार्मिक हो सकती है। यह दुनिया अधार्मिक नास्तिकों के कारण नहीं है, स्मरण रखना, यह तुम्हारे थोथे आस्तिकों के कारण अधार्मिक है। भगवान ने न तो उन्हें कुछ कहा, न उन्हें कुछ सिद्धांत सिखाए...। फर्क समझो। उन्होंने यह भी नहीं कहा कि दुनिया को भगवान ने बनाया है, और तुम्हारे भीतर आत्मा है, और इत्यादि-इत्यादि। उन्होंने तो अपनी जीवन ऊर्जा उन बच्चों पर बरसायी। जो उनके पास था, बच्चों को पिलाया। ध्यान दिया। ध्यान देना, सिद्धांत मत देना। यह मत कहना कि भगवान है। यह कहना कि शांत बैठने से धीरे-धीरे तुम्हें पता चलेगा, क्या है और क्या नहीं है। निर्विचार होने से पता चलेगा कि सत्य क्या है। विचार मत देना, निर्विचार देना। ध्यान देना, सिद्धांत मत देना। ध्यान दिया तो धर्म दिया और सिद्धांत दिया तो तुमने अधर्म दे दिए। शास्त्र मत देना, शब्द मत देना, निःशब्द होने की क्षमता देना। प्रेम देना। ध्यान और प्रेम अगर दो चीजें तुम दे सको किसी बच्चे को, तो तुमने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। तुमने इस बच्चे की आधारशिला रख दी। इस बच्चे के जीवन में मंदिर बनेगा, बड़ा मंदिर बनेगा। इस बच्चे के जीवन के शिखर आकाश में उठेगे और इसके स्वर्ण-शिखर सूरज की रोशनी में चमकेंगे और चांद-तारों से बात करेंगे। . उनकी सरल श्रद्धा देखते ही बनती थी। फिर उनके मां-बाप को खबर लगी। मां-बाप अति क्रुद्ध हुए, पर अब देर हो चुकी थी। बुद्ध का स्वाद लग चुका था। बहुत उन्होंने सिर मारा, उनके पंडित-पुरोहितों ने बच्चों को समझाया; डांटा-डपटा; भय-लोभ, साम-दाम, दंड-भेद, सबका उन छोटे-छोटे बच्चों पर प्रयोग किया गया, पर जो छाप बुद्ध की पड़ गयी थी सो पड़ गयी थी। उन्होंने एक अनूठा आदमी देख लिया था, अब ये पंडित सब फीके-फीके मालूम पड़ते थे। उन्होंने एक जीवंत ज्योति देख ली थी। अब ये पुरोहित बिलकुल राख थे। अब धोखा नहीं दिया जा सकता था। उन्होंने अनुभव कर लिया था इस आदमी के पास एक नयी ऊर्जा का, अब यह मां-बाप की बकवास और बातचीत कुछ अर्थ न रखती थी। जब तक अनुभव नहीं किया था तब तक कसम खाने को 271
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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